धर्म एवं दर्शन >> काम कामरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन
पार्वतीजी वटवृक्ष के नीचे आसीन भगवान् शंकर के निकट जाकर उनके चरणों में प्रणाम करती हैं और श्रीरामकथा के संबंध में प्रश्न करती हैं, तब भगवान् शंकर उन्हें विस्तार से रामकथा सुनाते हैं। पुष्पवाटिका-प्रसंग में भगवान् राम के द्वारा काम की स्वीकृति में काम के महत्त्व और गौरव का पक्ष प्रकट होता है, और जब धनुष-यज्ञ के मण्डप में गोस्वामीजी जनकनंदिनी की आँखों में काम की परिकल्पना करते हैं, तो मानो यह 'काम' के सम्मान की पराकाष्ठा है। इसी प्रकार भगवान् शंकर एवं पार्वतीजी के प्रसंग में श्रृंगार के माध्यम से काम की प्रतिष्ठा की ही बात सामने आती है। भगवान् राम के विवाह-प्रसंग में भी गोस्वामीजी 'काम' को बड़ा सम्मान देते हैं।
भगवान् राम दूल्हे के रूप में जिस घोड़े पर सवार होते हैं, गोस्वामीजी उसके श्रृंगार, सौन्दर्य और चंचलता की बड़ी प्रशंसा करते हैं। यह उचित भी है कि घोड़ा चंचल हो। यही तो उसकी शोभा है। घोड़ा यदि इतना शान्त हो जाय कि गधे की तरह चलने लगे तो क्या उसकी प्रशंसा होगी? घोड़े में गति हो, उत्साह हो और तीव्रता हो! यही तो अपेक्षित है। किसी ने गोस्वामीजी से पूछ दिया - ''महाराज! भगवान् राम जिस घोड़े पर सवार हैं, वह कहाँ से आया है? वह घोड़ा अयोध्या का है या मिथिला का है? गोस्वामीजी ने कहा कि यह घोड़ा सचमुच अद्वितीय है, क्योंकि यह तो 'काम' है जो घोड़े का वेष बनाकर नाच रहा है। मानो काम ने सोचा कि विवाह के अवसर पर भगवान् राम को भी मेरी आवश्यकता होगी, इसलिए वह घोड़ा बनकर आ गया और इस प्रकार 'राम' और 'काम' का साथ हो गया।
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