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धर्म एवं दर्शन >> काम

काम

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9811

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मानसिक विकार - काम पर महाराज जी के प्रवचन


कामदेव ने प्रकट होकर मुस्कराते हुए देवताओं की ओर देखा। उसकी दृष्टि में आश्चर्य का भाव था और प्रश्न भी था कि 'आज तो नयी बात हो गयी, आप लोग मेरी स्तुति कर रहे हैं। बताइये! क्या बात है? देवताओं ने भगवान् शंकर की समाधि और तारकासुर के अत्याचार का वर्णन करते हुए काम से प्रार्थना की- ''तुम भगवान् शंकर के पास जाकर उन पर अपने बाण से ऐसा प्रहार करो कि वे समाधि से बाहर आ जायँ, अपने नेत्र खोलकर देखें और उनमें विवाह की कामना उत्पन्न हो जाय। क्योंकि विवाह के बाद उत्पन्न होने वाले पुत्र के हाथों ही तारकासुर की मृत्यु हो सकेगी।'' देवताओं की बात सुनकर कामदेव समझ गया कि उसका अंतिम क्षण आ गया है, क्योंकि वह जानता है कि शंकरजी पर आक्रमण करने पर उसकी मृत्यु सुनिश्चित है-

सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा। 1/83/2


कामदेव ने देवताओं से यही कहा कि यद्यपि मैं जानता हूँ कि इस कार्य में मेरी मृत्यु हो जायगी पर मैं इसको अवश्य करूँगा। क्योंकि इस कार्य के रूप में मुझे परोपकार का जो अवसर मिल रहा है, उसके परिणाम में मुझे एक सर्वथा दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति होगी। कामदेव ने कहा कि-

परहित लागि तजै जो देही।
संतत संत प्रसंसहिं तेही।। 1/63/2


जो परोपकार के लिये शरीर छोड़ता है, संत उसकी प्रशंसा करते हैं संतों ने तो आजतक मेरी बड़ी निंदा की है, पर यदि आज मैं शरीर छोड़ दूँगा, तो उनको भी मेरी प्रशंसा करनी पड़ेगी, इसलिए यह कार्य मैं अवश्य ही सम्पन्न करूँगा और सचमुच 'काम' का यह कार्य परोपकार की दृष्टि से सर्वथा विलक्षण था, स्तुत्य था।

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