धर्म एवं दर्शन >> क्रोध क्रोधरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन
आप लोग जिसे अन्न समझ रहे हैं, वह अन्न नहीं मांस है, अत: इसे ग्रहण न करें। सुनकर ब्राह्मणों! को क्रोध आ गया और क्रोध का परिणाम कितना भयंकर हो सकता है, यह इस प्रसंग में हमें दिखायी देता है।
ब्राह्मण यद्यपि सात्त्विक वृत्ति के हैं, पर उन्हें यह सोचकर क्रोध आ गया कि यह राजा मांस खिलाकर हमारा धर्म-नष्ट करना चाहता था, आकाशवाणी से जो आदेश हुआ था उसमें तो अन्न न खाने की तथा अपने-अपने घर लौट जाने की बात कही गयी थी, पर यहाँ यह दिखायी देता है कि ब्राह्मणों ने इस आदेश का पालन विचारपूर्वक नहीं किया। यदि वे ऐसा करते तो एक बहुत बड़ा अनर्थ टल गया होता। ब्राह्मणों को क्रोध आ गया और उन्होंने बिना ठीक से विचार किये राजा को शाप भी दे दिया-
जाइ निसाचर होहु नृप मूढ़ सहित परिवार।। 1/173
अरे राजा! तू दुष्ट और मूर्ख है इसलिये हम तुम्हें शाप देते हैं कि जा! तू परिवार सहित राक्षस हो जा। इस शाप में विवेक था क्या? शाप देने से पहले ब्राह्मणों को क्या यह पता नहीं लगा लेना था कि प्रतापभानु ने यह सब क्यों और कैसे किया? उसके अपराध का मूल कारण क्या था? पर वे सब ऐसा नहीं करते। चलिये! राजा का अपराध था भी तो उस एक व्यक्ति के अपराध के लिये सारे परिवार को राक्षस हो जाने का शाप देना क्या उचित था? उसके परिवार ने क्या अपराध किया था? पर आवेश में आकर विप्रों ने सब को ही शाप दे डाला।
शाप का प्रयोग यदि एक अस्त्र के रूप में, अपराध मिटाने के लिये करना है, तो ऐसा किया जा सकता है, पर उसका उपयोग एक विवेकवान् शल्य-चिकित्सक की भाँति ही करना चाहिये न कि एक हत्यारे की तरह करना चाहिये। यद्यपि दोनों के ही हाथ में छूरी दिखायी देती है, दोनों उसका प्रयोग भी करते हैं, पर चिकित्सक सावधानी से रोगी के शरीर से उतना ही भाग काटता है कि जिससे रोगी का रोग दूर हो और वह पुन: स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सके। पर हत्यारा तो मनमाने ढंग से व्यक्ति के शरीर पर प्रहार करता है, क्योंकि उसका उद्देश्य प्राण बचाना न होकर प्राण लेना ही होता है। समाज को स्वस्थ बनाने का उद्देश्य लेकर शाप का सदुपयोग भी किया जा सकता है, पर ब्राहाणों के शाप का स्वरूप ऐसा नहीं दिखायी देता।
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