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क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813

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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन


गोस्वामीजी ने परशुरामजी के क्रोध की तुलना नदी से की। नदी जीवनदायिनी है और बड़ी उपयोगी है। आप उसके जल को पी सकते हैं, उसमें कपड़े धो सकते हैं, नहा सकते हैं तथा और भी अन्य उपयोग में ला सकते हैं। पर जब उस नदी में बाढ़ आ जाती है तो वही नदी तब विनाश करने लगती है। वह अपने किनारे के गाँवों को डुबो देती है, पशुओं को बहा ले जाती है और फसल इत्यादि को नष्ट कर देती है। उसी प्रकार परशुरामजी की क्रोधरूपी नदी में बाढ़ आ गयी इसलिये जब किसी ने गोस्वामीजी से पूछा कि परशुराम के रूप में एक  'राम' तो थे ही फिर दूसरे भगवान् राम की आवश्यकता क्यों पड़ गयी? परशुरामजी भी अवतार ही हैं, वे ही रावण को दण्ड दे देते? गोस्वामीजी ने इसका उत्तर देते हुए कहा - 'क्योंकि परशुरामजी रूपी नदी में क्रोध की बाढ़ आगयी इसलिये भगवान् राम को बाँध बनकर आना पड़ा।'' गोस्वामीजी कहते हैं -

मोर धार भृगुनाथ रिसानी।
घाट सुबद्ध राम बर यानी।। 1/40/4


भगवान् राम ने अपनी बाणी के द्वारा ऐसे सुदृढ़ बाँध का निर्माण कर दिया कि जिससे परशुरामजी की क्रोध रूपी नदी का उफान बिलकुल शान्त हो गया।

भगवान् राम परशुरामजी के साथ वार्तालाप करते समय बड़ी सावधानी से बोलते हैं। भगवान् राम 'वचन-रचना' में भी अत्यन्त कुशल हैं। इस समय तो उन्हें बाँध का निर्माण करना है न! इसलिये जैसे बाँध बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि कहीं से भी कमजोरी न रह जाय, भगवान् राम भी बड़ी सावधानी से, श्रेष्ठ वाणी के द्वारा एक सुदृढ़ बाँध का निर्माण करते हैं।

हम देखते हैं कि सचमुच परशुरामजी में क्रोध की बाढ़ आ गयी थी। अन्याय करने वाले को दण्ड देना तो उचित है पर एक व्यक्ति के अपराध के कारण उन्हें पूरी जाति और समाज पर क्रोध आ गया। इतना ही नहीं, एक क्षत्रिय राजकुमार के द्वारा शिव-धनुष टूट जाने का समाचार सुनकर कुद्ध होकर वे तमतमाये हुये धनुष-मंडप में आये। उस समय तक सीताजी के द्वारा भगवान् राम के गले में जयमाल भी पड़ चुका था और टूटा हुआ धनुष नीचे पड़ा हुआ था। गोस्वामीजी उस सभा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान् राम के द्वारा धनुष टूट जाने के बाद भी उपस्थित राजाओं का एक बहुत बड़ा समूह, यह योजना बना रहा था कि इस राजकुमार को हराकर हम बलात् सीता को छीन लेंगे! इससे सीता का विवाह किसी प्रकार भी नहीं होने देंगे! वस्तुत: भगवान् राम से धनुष इतनी सरलता से टूट गया था कि इन राजाओं को यह इन्द्रजाल या कोई जादूगरी ही लग रही थी। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह क्या हुआ? वे मानने को तैयार ही नहीं थे कि इस राजकुमार ने धनुष तोड़ा है। ठीक उसी समय परशुरामजी महाराज आ गये। अब तो उस सभा का दृश्य ही बदल गया। वे राजा जो अभी लड़ने की तैयारी कर रहे थे, सब-के-सब अपना और अपने-अपने पिता का नाम ले-लेकर साष्टांग प्रणाम करने लगे। प्रणाम करने की ऐसी पद्धति पुरानी परम्परा में विद्यमान थी।

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