धर्म एवं दर्शन >> परशुराम संवाद परशुराम संवादरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस के लक्ष्मण-परशुराम संवाद का वर्णन
परशुराम-संवाद मानो इस सत्य को प्रकट करने के लिए है कि दिव्य प्रकाशमय, परशुरामजी भी साक्षात् सूर्य हैं, रावण की तरह अन्धकारमय नहीं है। जैसे सूर्य के समक्ष जब बादल आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश नहीं दिखायी देता, उसी प्रकार से परशुराम के ऊपर आवरण आ गया था, जो संवाद से दूर हुआ। परशुरामजी ने श्रीराम की परीक्षा ली। उन्होंने यह निर्णय किया कि जब राजर्षि जनक ने आपकी धनुष के द्वारा परीक्षा ली तो अब मैं भी धनुष के द्वारा ही आपकी परीक्षा लूँगा। विश्वामित्र ने कहा कि ताड़का को मारकर दिखाओ तब हम समझें कि तुम ईश्वर हो। जनकजी ने कहा कि आप धनुष तोड़कर दिखाइए, तब मुझे पूर्ण विश्वास हो।
परशुरामजी ने भी कहा कि धनुष खींचकर दिखाइए तब मैं विश्वास करूँ। सब धनुष के आधार पर ही परीक्षा ले रहे हैं। परशुरामजी ने कहा कि इस धनुष को खींचिए। श्रीराम ने हाथ आगे नहीं बढ़ाया। परशुराम के हाथ से धनुष निकला और श्रीराम की ओर चल गया, धनुष अपने आप ही चढ़ गया। इससे भगवान् मानो यह बताना चाहते हैं कि कर्तृत्व रहित कर्म भी होता है। मैं खींचू, इसके स्थान पर न खींचने वाला है, न तोड़ने वाला है, पर सारा दृश्य हो रहा है। जब स्वयं धनुष श्रीराम के हाथों में पहुँचकर चढ़ गया तो –
जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात।
जोरि पानि बोले बचन हृदयँ न प्रेमु अमात।। 1/284
तब पहचान गये, अरे! ये तो साक्षात् ब्रह्म हैं और इनसे तो कोई भिन्नता हो ही नहीं सकती। मेरी बुद्धि के ऊपर आवरण आ गया था, अहंता और ममता के कारण तथा खण्डित दृष्टि के कारण। अब वह मिट गया। अब मैं प्रसन्न हूँ। भगवान् राम ने एक बार कह दिया कि महाराज! मुझमें तो गुण हैं ही नहीं। परशुरामजी ने पूछा कि बिना गुण के व्यवहार चलेगा क्या? तो भगवान् राम ने कहा कि हाँ महाराज! व्यवहार तो बिना गुण के नहीं चलेगा, मुझमें तो कोई गुण नहीं हैं, पर धनुष में एक गुण है –
देव एकु गुनु धनुष हमारें।
नव गुन परम पुनीत तुम्हारें।। 1/281/7
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