ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
दोनों गांव से बाहर आ गए। वहीं पर जमीन से झाड़-झंखाड को उखाड़ कर उस जगह की सफाई की। वहां पर रहने के लिए एक छप्पर डाला, और दोनों वही पर रहने लगे। एक दिन लक्ष्मी ने अपने पति किरोड़ीमल को एक कागज देते हुए कहा - देखो जी, यह हुण्डी है अब आप इस हुण्डी को बाजार में लेकर जाएं और बेच देना, पर एक बात और इसे सौ रुपये से कम मत बेचना। और हां, शाम तक आप इसे जरूर से जरूर बेचकर आना।
सुबह होते ही सेठ किरोड़ीमल उस हुण्डी को लेकर बाजार में बेचने निकल गया। वह पूरे बाजार में घुसा। घूमते-घूमते शाम हो गई। अन्त में वह एक दुकान पर गया। जहां उस समय उस दुकान का मालिक घर गया हुआ था। और दुकान में सेठ का लड़का हजारी बैठा था। तब किरोड़ीमल ने उससे कहा- भाई मेरी ये हुण्डी खरीद लो।
कितने रुपये की है, मैं खरीदूंगा तेरी ये हुण्डी – हजारी बोला।
सौ रुपये की है- खुशी से किरोड़ीमल बोला।
हजारी ने सौ रुपये गल्ले से निकाल कर किरोड़ीमल को दे दिए और उसकी वह हुण्डी खरीद ली। किरोड़ीमल ने हुण्डी उसको दी और खुशी-खुशी घर लौट आया। घर आकर उसने वो सौ रुपये लक्ष्मी के हाथ में थमा दिए। लक्ष्मी खुशी से उछल पड़ी। पहले सौ रुपये काफी होते थे। उसने छान-छप्पर को हटाकर उसकी जगह एक मकान बनवाया और किरोड़ीमल के लिए दुकान बनवाई। इस हुण्डी से उनका घर तो संवर गया मगर सेठ हजारी प्रसाद का क्या हुआ। सेठ हजारी प्रसाद की कहानी हुण्डी के खरीदने से शुरू होती है। हुण्डी खरीदने के बाद हजारी प्रसाद ने उसे खोलकर देखा।
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