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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9833

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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।

संपन्नता के अतिरिक्त दूसरा उद्यान शिक्षा का है, जिसे बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, एकाग्रता आदि के नाम से भी जाना जाता है। वकील, इंजीनियर, कलाकार, विद्वान, मनीषी आदि को देखकर अपना भी मन चलता है कि काश! हमें भी ऐसा संयोग मिला होता, तो अधिक कमाने और अधिक सम्मान पाने की परिस्थिति हाथ लगी होती? पर इस स्थिति से वंचित रहने का दोष परिस्थितियों या अमुक व्यक्तियों पर देना भी व्यर्थ है। यदि शिक्षा का महत्व समझा और उत्साह उभारा जा सके, तो बौद्धिक दृष्टि से समुन्नत बनने के लिए आवश्यक सुविधाएँ अनायास ही खिंचती चली आती हैं। संसार के अधिकांश मनीषी, प्रतिकूलताओं से जूझते हुए अपने लिए अनुकूलता उत्पन्न करते रहे हैं।

इस लेखक को एक ऐसे साथी के संबंध में जानकारी है, जो एक वर्ष की जेल काटने के साथ-साथ लोहे के तसले पर कंकड़ को कलम बनाकर अंग्रेजी पढ़ता रहा। एक पुराने अखबार ने ही पुस्तकों की आवश्यकता पूरी कर दी। साथियों में ही ऐसे मिल गए जो पढ़ने में प्रसन्नतापूर्वक सहायता करते रहे। एक वर्ष में ही इतनी सफलता अर्जित कर ली, जिसे देखकर लोगों को आश्चर्यचकित रहना पड़ा था। इसमें न जादू है, न चमत्कार। भीतर का प्रसुप्त यदि अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हो और कुछ कर गुजरने की उमंगों से अपने को अनुप्राणित कर ले, तो समझना चाहिए कि सरस्वती उसके आँगन में नृत्य करने के लिए सहमत हो गई। अन्य विभूतियों की तरह विद्या भी मनुष्य के आंतरिक आकर्षण से अनायास ही खिंचती चली आती है। संसार के प्रगतिशील मनीषियों का इतिहास इस संदर्भ में पग-पग पर साक्षी देने के लिए विद्यमान है।

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