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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘परन्तु मैं अपने पति से वचन बद्ध हूं।’’

‘‘मैं चाहता हूं कि उस वचन को भंग कर दो। मेरे साथ नये कौलो-इकरार कर लो। मैं घाटे का सौदा नहीं हूं। मैं इतनी सामर्थ्य रखता हूं कि तुम्हें लेकर भूमण्डल भ्रमण के लिए तुरन्त जा सकता हूं।’’

‘‘नो! नो! नो!!’’ नज़ीर ने जोश में कहा, ‘‘मैं एक दुर्बल औरत हूं और किसी पशु से भिड़ नहीं सकती। इस पर भी स्वेच्छा से तुम्हारी इच्छा पूर्ति नहीं करूंगी।’’

‘‘तब ठीक है! मैं वचन देता हूं कि मैं तुम पर बलात्कार नहीं करूंगा। यह बैड-रूम तुम्हारा है और मैं यहां नित्य तुम्हें ‘वू’ करने आया करूंगा। मैं आशा करता हूं कि तुम शीघ्र अपने हानि-लाभ को समझ मेरे साथ नया इकरार नामा कर लोगी।’’

‘‘अच्छा यह बताओ! मैं तुम्हारे साथ बैठकर खाना भी खा सकता हूं अथवा नहीं?’’

‘‘भूख तो लगी है। मगर मैं एक बात बता दूं कि मुझे कभी-कभी पागलपन के दौरे पड़ते हैं और उस दोरे में मैं कोई घातक प्रहार भी कर सकती हूं।’’

‘‘ओह! तब तो बहुत सावधान रहना चाहिए मुझे। मैं तुम जैसी सुन्दर स्त्री का पति बनने की अभिलाषा रखता हूं, इस कारण मरना नहीं चाहूंगा।’’

‘‘मैं चाहती हूं कि मुझे यू० के० हाई कमिश्नर के कार्यालय में पहुंचा दें।’’

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