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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेजकृष्ण गया और दो टिकट ऑक्सफोर्ड के ले आया। रात भोजन के समय यशोदा ने अपने पिता को बताया, ‘‘मैं कल ऑक्सफोर्ड जा रही हूँ।’’

‘‘तो क्या कोई सूचना आयी है?’’

‘‘सूचना तो तब आनी थी जब विवाह न होना होता। मैंने मैत्रेयी से कहा था कि यदि उसका कोई समाचार न आया तो मैं उसे बधाई तथा आशीर्वाद देने आऊंगी। उसका निमन्त्रण तो है ही।’’

‘‘मैं तो बार-बार यहां का काम छोड़ कर नहीं जा सकता।’’

‘‘तेज मेरे साथ जा रहा है।’’

‘‘अब क्या करने जा रहा है?’’

‘‘उसे बधाई देने।’’

‘‘उसे बधाई देने अथवा उसकी सहानुभूति बटोरने? यदि मैं इसके स्थान पर होता तो उसे जीवन भर अपना मुख न दिखाता।’’

तेजकृष्ण भी मेज पर बैठा भोजन कर रहा था। उसने कह दिया, ‘‘परन्तु पिता जी! मैं अपने को उसकी सहानुभूति का पात्र नहीं समझता। मैं उसे अपने प्रयासों में सफल होने में ‘काग्रैच्युलेट’ करने जा रहा हूं।’’

‘‘देखो तेज! बधाइयां वे देते हैं जो स्वयं बधाइयों के पात्र हों। असफल व्यक्ति सफल को मुबारिकबाद देने नहीं जाते।’’

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