उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
पिताजी कुछ उत्तर देने ही लगा था कि प्रज्ञा अपनी सास और ननद के साथ आ गई। उमाशंकर ने ड्राइंगरूम के बाहर जा बहन के परिवार का स्वागत करते हुए कमला से पूछा, ‘‘सुनाओ, वीणा कैसे बज रही है?’’
‘‘बहुत बढ़िया। कभी वहाँ घर पर आइए तो आपको सुनाऊँगी। मेरे मास्टर कहते हैं कि दिल्ली में ‘नौन-प्रोफेशनल’ में मेरा कोई मुकाबिला नहीं कर सकता।’’
‘‘तब तो सुनानी पड़ेगी। तुम्हारे भैया किसी दिन बुलायेंगे तो सुनने आऊँगा।’’
यह कहता हुआ उमाशंकर मेहमानों के साथ ड्राइंगरूम के अन्दर आ गया। पिता ने उसके कथन में ‘आऊँगा’ सुन लिया था।
पिता ने पूछ लिया, ‘‘कहाँ जाओगे?’’
‘‘नगीनाजी को विचित्र वीणा बजाते सुनने के लिए।’’
कमला अपने कन्धे से कैमरा लटकाए हुए थी। उसने पिताजी की सूरत देखी तो वहीं खड़ी हो गई और कैमरा खोल देखने लगी।
इस पर तो प्रज्ञा गम्भीर हो गई। उमाशंकर पिता से डाँट सुनने की आशा कर रहा था कि कमला ने कह दिया, ‘‘पिताजी! तनिक मुख इधर कर मुस्कराइए।’’
रविशंकर हाथ उठा ‘शौट’ लेने से मना करने लगा था कि ‘क्लिक’ हुआ और चित्र खिंच गया।
कमला ने कैमरा छोड़ माताजी की कदम-बोसी की और फिर पिताजी को हाथ जोड़कर कहा, ‘‘यह तस्वीर तो अच्छी नहीं आएगी। कुछ ठहर कर और लूँगी।’’
‘‘क्यों?’’
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