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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘बस, इसीलिए जिसके लिए यह कैमरा बना है।’’ इतना कहते हुए कमला दोनों माताओं के बीच बैठ गई। महादेवी ने उसके इस प्रकार बीच में घुसड़ने को पसन्द नहीं किया, परन्तु मना भी नहीं कर सकी। सरस्वती ने एक और हटकर कमला के लिए स्थान बनाया तो वह बैठकर हँसती हुई बोली, ‘‘पिताजी! यह फोटो आपको दिखाऊँगी। फोटो तो बहुत सुन्दर आया है। मगर आपका हाथ उठा हुआ आपके आँखों और मुख पर आ गया है।

‘‘आज की यादगार में यह दृश्य मेरी एलबम का बहुत ही आकर्षक पन्ना बना रहेगा।’’

कमला पूर्ववत् ऐसे आई थी जैसे किसी पहाड़ी स्थान से ‘बबलिंग स्ट्रीम’ लुढ़कती हुई समतल भूमि पर आती है। उमाशंकर कमला के इस व्यवहार से बहुत प्रसन्न था और मन्त्र मुग्ध हुआ और उसके मुख पर देख रहा था।

प्रज्ञा के उत्तर देने से पहले ही कमला ने कह दिया, ‘‘पिताजी! आपने हमें बुलाया क्यों नहीं?’’

‘‘बात यह है कि आपका लिफाफा ‘अन-डिलिवर्ड’ आज दस बजे की डाक से लौट आया है।’’

‘‘परन्तु पिताजी! आपने पता गलत जो लिखा था?’’

‘‘पता तो ठीक ही लिखा था। हाँ, यह विदित नहीं था कि मुहम्मद यासीन उस चक्कर में इतनी दूर तक सम्मिलित हो चुका है कि चिट्ठियाँ भी वापस आने लगी हैं।’’

‘‘पिताजी! बात यह है कि कुछ दिन हुए, उनको पिताजी का एक पत्र बहुत डाँट-डपट का आया था। इस कारण उन्होंने यही उचित समझा कि अपना बदला हुआ नाम विख्यात करना शुरू कर दें।

‘‘हमने कोठी का नाम ‘खोजा लौज’ से बदलकर ‘अरुणांचल’ रख लिया है और अपने नाम कोठी के बाहर लिखवा दिए हैं।’’

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