उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
इस समय तक महादेवी को अपना कर्त्तव्य स्मरण हो आया। वह क्लीनिक में रखे मिठाई के डिब्बे लेने के लिए भागी। परन्तु उमाशंकर प्रज्ञा के साथ चलते-चलते बोला, ‘‘मुझे इसी बात की आशंका थी, परन्तु एक बात ठीक हो रही है। अभी से चर्चा चलने लगी है। हमारे विवाह में अभी पर्याप्त समय है और मैं आशा करता हूँ कि तब तक मैं पिताजी को राजी कर लूँगा।
‘‘प्रज्ञा! आओ न, तुम्हें अपना क्लिनिक दिखाऊँ।’’
‘‘प्रज्ञा, सरस्वती और कमला तीनों उमाशंकर के क्लिनिक को चल पड़े।’’
बरामदे में एक ही कमरा था। वहाँ दवाई-खाना था। फिर उसके साथ का कमरा उमाशंकर ने राय करने का कमरा बनाया था। उस कमरे के पीछे एक अन्य कमरा भी था। वह उमाशंकर ने ‘पैथालौजिकल रूम’ बना लिया था। उसमें परीक्षण के लिए कुछ यन्त्र लगवा दिये गये थे।
सबको लेकर उमा अपने राय करने वाले कमरे में दाखिल हुआ तो महादेवी चार डिब्बे मिठाई लेकर निकलते मिली।
उसने प्रज्ञा को कहा, ‘‘यह ले जाओ, मुख मीठा कर लेना। मैं समझ रही थी कि यह लेकर पीछे-पीछे तुम्हारे घर जाना पड़ेगा।’’
‘‘माताजी! मैं नाराज नहीं हूँ। न ही रूठी हुई हूँ। मैं केवल पिताजी को उनके कठोर व्यवहार का भान कराने के लिए जा रही हूँ।’’
‘‘कमला!’’ प्रज्ञा ने अपनी ननद को सम्बोधित कर कहा, ‘‘माताजी से मिठाई लेकर धन्यवाद कर दो और बधाई दे दो।’’
इसके उपरान्त उमाशंकर अपने क्लीनिक और ‘पैथालौजिकल रूम’ के सामान और उसके प्रयोग की बात समझाने लगा।
महादेवी उनको छोड़ यह पता करने कोठी के बाहर को चल पड़ी कि उसका पति मिस्टर बोस के घर पर ही है अथवा कहीं अन्यत्र चला गया है।
परन्तु वह अभी कोठी के फाटक तक ही पहुँची थी कि शिव अपने स्कूटर को हाथ से खींचता हुआ फाटक की ओर आता दिखाई दिया।
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