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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


माँ ने पूछ लिया, ‘‘स्कूटर खराब हो गया है क्या?’’

‘‘नहीं माँ! पिताजी मार्केट की ओर जाते मिल गये थे। मैं उतरकर पूछने लगा था कि किधर जा रहे हैं। पिताजी ने कह दिया, ‘तुम जाओ। मैं पन्द्रह-बीस मिनट में आता हूँ।’’

‘‘माँ, क्या हुआ है?’’

‘‘कुछ नहीं। प्रज्ञा आई है और पिताजी उससे नाराज हो चले गए हैं।’’

‘‘तो आ जाएँगे। तुम कहाँ जा रही हो?’’

‘‘यही देखने जा रही थी कि किधर गए हैं?’’

‘‘चलो माँ! बहन से मिल लूँ। पिताजी का क्रोध दस मिनट से अधिक नहीं रहता। मुझे विश्वास है भोजन के समय तक आ जाएँगे।’’

जब शिवशंकर और महादेवी भीतर पहुँचे तो प्रज्ञा, उमाशंकर इत्यादि कोठी के द्वार की ओर जा रहे थे।

‘‘दीदी! कहाँ जा रही हो?’’

‘‘तो तुम आ गए हो?’’

‘‘हाँ! आओ भीतर चलो, तुम्हें अपनी परीक्षा की रिपोर्ट सुनाऊँगा।’

‘‘नहीं! अब हम जा रही हैं। तुम मुझे मिलने आओगे तो मुझे बहुत खुशी होगी। देखो, पिछले मास की दावत की फोटो बहुत बढ़िया बनी हैं। उनमें एक तुम्हारी भी है।’’

‘‘तब तो आऊँगा।’’

‘‘और एक बात भी है?’’

‘‘क्या?’’

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