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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘इस समय, मेरे विचार में पिताजी में आसुरी व्यवहार का प्रभाव बढ़ गया है। मेरा अभिप्राय है कि उनके दिमाग में नास्तिक्य पचास प्रतिशत से अधिक हो गया है और आस्तिक्य पचास प्रतिशत से कम रह गया है। यदि कहीं आस्तिक्य शत-प्रतिशत हो जाता तो सम्भव है वह छड़ी लेकर मुझे पीटने लग जाते। तब स्थिति अति भयंकर हो जाती। अतः ईश्वर का धन्यवाद है कि नास्तिक्य शत-प्रतिशत नहीं हुआ।’’

‘‘मैं समझती हूँ कि हममें आस्तिक्य उभर रहा था। इसी कारण जब भैया ने कहा कि मैं क्लीनिक देखूँ तो मैं तैयार हो गई थी और पीछे माताजी के कहने पर मिठाई लेने से इनकार नहीं कर सकी।’’

‘‘मेरी आँखें तरल होने लगी थीं, परन्तु यह अवस्था एक-दो क्षण तक ही रही। कारण यह कि एक आस्तिक कभी निराश नहीं होता। उसका आश्रय-स्थान, मेरा अभिप्राय है परमात्मा, स्थिर है। एक आस्तिक यह विश्वास रखता है कि जब भी वह असफल होता है तो उसके किसी कार्य में त्रुटि के कारण ही होता है। अतः उसे सदैव अपनी त्रुटियों की ओर ही देखना चाहिए और उन्हें दूर करने का यत्न करते रहना चाहिए।’’

इस समय वे अपनी कोठी के द्वार पर जा पहुँची थीं। सब देखकर हैरान रह गये कि अब्बाजान, नगीना की माँ के साथ टैक्सी से उतर टैक्सी वाले को भाड़ा दे रहे हैं। सरस्वती तो उन्हें देख घबरा उठी। कमला के मुख की मुद्रा दृढ़ हो गई थी। सरस्वती ने समीप पहुँच कह दिया, ‘‘आदाब अर्ज़ करती हूँ।’’

अब्दुल हमीद क्रोध के घोड़े पर सवार था। उसने सरस्वती के आदाब का उत्तर नहीं दिया। मगर सालिहा अपनी लड़की की ओर देखकर बोली, ‘‘और तुम क्या करती हो यहाँ?’’

‘‘अम्मी! भीतर चलो तो सब दिखा दूँगी जो कुछ पिछले तीन महीने मैं मैने किया है?’’

भाड़ा देने के उपरान्त अब्दुल हमीद ने प्रज्ञा की ओर देखा और कहा, ‘‘यह मकान पर क्या लिख दिया है। मैं दो मिनट तक समझ ही नहीं सका कि तुम्हारी शरारत यहाँ तक पहुँच गई है?’’

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