उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
प्रज्ञा के इस कथन ने तो अब्दुल हमीद को परेशान कर दिया। एक व्यापारी होने से वह इस किस्म की सब बातें करता था। झूठ बोलता था, टैक्सों में भी चोरी करता था। बिना जाने कि कोई परमात्मा को मानता है या नहीं मानता, खासतौर पर हिन्दुओं से नफरत करता था।
इस कारण उसने बात बदल दी। उसने प्रज्ञा को कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम माँ बनने वाली हो?’’
‘‘अब्बाजान! आपको किसने कहा है?’’
‘‘यासीन की अम्मी ने कहा है।’’
‘‘उन्होंने यह ठीक नहीं किया। मगर वह मुझसे बड़ी हैं। इस कारण मैं उनसे गिला नहीं कर सकती।’’
‘‘मगर इसको छुपाने की जरूरत क्या थी?’’
‘‘यह बात औरतें मर्दों को नहीं कहतीं। यह रिवाज है।’’
‘‘मगर तुम्हारे वालिद साहब कह रहे हैं कि रिवाज तो बदलते रहते हैं?’’
‘‘जी! इसलिए कहा है कि मैं गिला नहीं कर सकती। अगर उन्होंने रिवाज बदला है तो वह बड़ी हैं। वह बदलने की तौफीक रखती हैं।’’
अब्दुल हमीद इस प्रकार की बातों से घबरा रहा था। उसकी हर बात को काटा जा रहा था। इस समय महादेवी ने आकर अपने पति से कहा, ‘‘मैं समझती हूँ कि आपको भाई साहब का धन्यवाद कर इनसे छुट्टी लेनी चाहिए। घर पर तीन बजे कुछ लोग उमाशंकर से मिलने के लिये आने वाले हैं।’’
रविशंकर उठ खड़ा हुआ। अब्दुल हमीद ने भी यही ठीक समझा। वह भी रविशंकर के उठते ही उठ खड़ा हुआ, और फिर ड्राइंग-रूम की मजलिस बर्खास्त हो गई। रविशंकर, महादेवी, उमाशंकर तथा शिवशंकर जाने के लिए घर से निकले तो अब्दुल हमीद और मुहम्मद यासीन उनको छोड़ने बाहर तक आए।
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