उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘मतलब यह कि बिल्ली नजर से ओझल हुई तो चुहिया फुदकने लगी है?’’
नगीना की बात सुन सरवर ने पूछ लिया, ‘‘कौन बिल्ली है?’’
‘‘अब्बाजान, जो सबके मालिक हैं।’’
‘‘नहीं! वह मालिक नहीं हैं। खाविन्द जरूर हैं, मगर कल वह खाविन्द के हक-हकूक से कुछ ज्यादा को तवक्को करने लगे थे। वह ऐसे हुक्म देने लगे थे, मानो मेरे मालिक हैं और मैं उनकी जरखरीद लौण्डी हूँ।’’
‘‘तो वह तुम्हारे मालिक नहीं हैं?’’
‘‘नहीं, मेरा मालिक मेरा खुदा है, सिर्फ खुदा।’’
‘‘और अम्मी! तुम्हारा मालिक खुदा कैसे है?’’
‘‘सब खलकत का वही मालिक है। उसे सबका पालन करने वाला कहा जाता है। वह परवरदिगार है।’’
मुहम्मद यासीन गाड़ी चला रहा था और प्रज्ञा उसे साथ आगे बैठी हुई मां-बेटी की बातें सुन रही थी। उसने पूछ लिया, ‘‘मगर अम्मीजान! अब्बाजान क्या करने को कह रहे थे जो उनको नहीं कहना चाहिए था।’’
‘‘यह नहीं बताऊँगी। यह खाविन्द और बीवी के बीच की बात है। उसे बताऊँगी नहीं, मगर एक नाज़ायज़ बात को मानूँगी भी नहीं।
‘‘मैं खुदा को मानती हूँ और उसके हुक्म को सब इन्सानी हुक्मों से ऊपर समझती हूँ।’’
अब फिर नगीना ने बातों में दखल देते हुए पूछा, ‘‘मगर अम्मी! खुदा को तो अब्बाजान भी मानते हैं। मैं जानती हूँ कि वह हर रोज दो वक्त नमाज पढ़ते हैं। वह मुझे भी नमाज रोज पढ़ने के लिए कहते हैं।’’
‘‘खुदा को मानने की बात कहनी और उसको मानना दो मुख्तलिफ बातें हैं। नमाज पढ़ने से कोई खुदा को मानने वाला नहीं कहा जा सकता। उसके हुक्म मानना ही उसको मानना कहते हैं।’’
‘‘उसके हुक्म क्या हैं?’’ नगीना का प्रश्न था।
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