उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यह प्रज्ञा मुझसे ज्यादा अच्छी तरह समझा देगी। इसने एक दिन मुझे भी बताया था। मैं समझ तो गयी थी, मगर अब याद नहीं रहा। मैं तो इतना ही जानती हूँ कि खुदाई हुक्मों को मानना ही खुदा को मानना है।’’
घर पहुँच सरवर ने पुत्र को पृथक् में अपने कमरे में बैठाकर कहा, ‘‘देखो बेटा! तुम्हारी बीवी के हमल ठहरा हुआ है। इसलिए उससे अब बीवी का काम लेना बन्द कर दो और उसे आराम करने दो।
‘‘तुम्हारे अब्बाजान ने नगीना को यहाँ एक मक्सद से छोड़ा है। वह चाहते हैं कि तुम उससे शादी कर लो।’’
‘‘हाँ, अम्मी! मुझे यह मालूम है। मगर मैं यह नहीं चाहता। उसके लिए मेरे मन में हमशीरा का ख्याल बना हुआ है। मैंने अब्बाजान को इनकार कर दिया है।’’
‘‘बस, यही बात मेरे साथ भी है। मगर मैं इनकार नहीं कर सकी। हाँ, मैं उनकी राय मान नहीं सकी।’’
मुहम्मद यासीन ने इसी विषय पर प्रज्ञा से भी बात की और उसे बताया, ‘‘मैंने मन-ही-मन अब अब्बाजान से सम्बन्ध न रखने का फैसला कर लिया है।’’
‘‘वैसे उन्होंने यहाँ का मकान और दुकान मेरे नाम लिख कर देते समय मुझे कहा था कि अब मेरा उनसे कुछ भी लेना-देना नहीं रहा, अपना कमाओ और खाओ। परन्तु यहाँ आकर उनकी कल की हरकत से मैं अब उनको मन से भी निकाल चुका हूँ।’’
प्रज्ञा से बातचीत रात के समय हो रही थी। रात का खाना खाकर वे अपने कमरे में बैठे सोने की तैयारी कर रहे थे। नगीना को अभी पृथक् कमरा नहीं मिला था। वह अपनी बड़ी अम्मी के कमरे में ही सो रही थी। मगर उसने दो बातों की माँग की थी। एक तो रहने और सोने के लिए पृथक् कमरा और दूसरे, बजाने के लिए एक विचित्र-वीणा तथा सिखाने के लिए एक उस्ताद।
ज्ञानस्वरूप ने नगीना की माँग के विषय में प्रज्ञा को बताया तो प्रज्ञा ने कह दिया, ‘‘कल तो वह कह रही थी कि फोटोग्राफी के लिए उसे एक पृथक् कमरा चाहिए। मैंने उसे समझा दिया था कि इसके लिए झंझट नहीं करे। वह अपनी फिल्में किसी भी फोटोग्राफर से धुलवा सकती है।’’
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