उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘इस लड़की को पर लग गए हैं। यह वैसे ही उड़ जाएगी जैसे तुम उड़कर यहाँ आ गई थीं।’’
‘‘इसमें भी अन्तर है।’’ प्रज्ञा ने कहा, ‘‘मैं परमात्मा पर अगाध विश्वास रखती हुई अपार आत्मबल रखती थी। यह नास्तिक की बेटी, परमात्मा के विषय में अ-आ भी न जानती हुई, किसी के भी चंगुल में फँस सकती है। इसकी अम्मी ने ही बताया था कि वह किसी के आगे-पीछे भागती फिरती थी। कुछ महीने हुए इसके ऐक्ट्रेस बनने की रुचि हो गई। यह एक फिल्म डायरेक्टर के चक्कर में पड़ गई। मगर जब अब्बाजान को पता चला तो उन्होंने उस फिल्मी डायरेक्टर महोदय को डरा-धमका कर भगा दिया था।
‘‘यदि यह पसन्द करे और दादा चाहें तो मैं दोनों में कौल-इकरार करा देना चाहती हूँ। परन्तु शादी तो दो वर्ष उपरान्त ही हो सकेगी। दोनों में यदि कौल-इकरार हो गया तो फिर दोनों बँध जायेंगे और मैं समझती हूँ कि अपना व्यवहार ठीक रख सकेंगे।’’
‘‘मगर यह नगीना तो ज्वालामुखी पर्वत है। कहीं फटा तो विनाश भी खूब कर सकता है।’’
‘‘मैं समझती हूँ कि यदि एक बार दोनों की मानसिक सगाई हो सकी तो फिर इसको सन्मार्ग पर लाना सुगम हो जाएगा।’’
‘‘मगर यह करोगी कैसे?’’
‘‘मैं कल अपनी माताजी से मिलने जाना चाहती हूँ। जरा देखना चाहती हूँ कि कल की दावत में हुए वार्तालाप की उनके मन पर क्या प्रतिक्रिया हुई है। यदि नगीना ने कुछ भी रुचि मेरे साथ वहाँ जाने की प्रकट की तो उसे साथ ले जाऊँगी और फिर दोनों की प्रकृति को कार्य करने दूँगी। मैंने सुना है कि उस दिन दादा कह रहे थे कि नगीना एक ओजस्वी लड़की है और वह इसकी ओर आकर्षित अनुभव करता है।’’
‘‘देखना यह है कि माता-पिता के व्यवहार और विचारों की इसके मन पर क्या प्रतिक्रिया हुई है।’’
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