लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘भाभीजान! आपने परमात्मा को देखा है?’’

‘‘मैं तो सब समय देखती हूँ। अब भी देख रही हूँ।’’

‘‘कहाँ?’’

‘‘तुम में, अपने में, तुम्हारे भाईजान में और अम्मीजान में।’’

‘‘तो मुजे भी दिखा दो।’’

‘‘हाँ दिखा सकती हूँ। मैंने उसके दीदार तुम्हारे भाईजान को कराए हैं।’’

मुहम्मद यासीन ननद-भाभी में यह वार्त्तालाप सुन मुस्करा रहा था। प्रज्ञा के इस कहने पर कि उसने परमात्मा के दर्शन अपने पति को कराए हैं, वह पूछने लगी, ‘‘भाईजान! आपने खुदा को देखा है?’’

‘‘हाँ, नगीना! इसको देखने का एक तरीका है। वह मैंने तीन महीने के अभ्यास से सीखा है। तुम भी प्रज्ञा की संगत में आओगी तो सीख जाओगी।’’

सरवर ने कह दिया, ‘‘हाँ, खुदा को देखा जा सकता है। मगर इन आँखों से नहीं, उसको देखने की आँख दूसरी है।’’

‘‘तो भाभीजान! मुझे भी दिखा दो। मैं तो सब खुदा-दोस्तों को ज़ाहिल समझती हूँ। अब्बाजान को सबसे ज्यादा। मैंने कभी ऐसा कहा नहीं, यह इस वास्ते कि वह अब्बाजान हैं। उनकी इज्जत करनी चाहिए।’’

‘‘यह ठीक है। वह बड़े हैं। मगर खुदा के दर्शन के लिए रोज मेरे कमरे में प्रातःकाल के समय कम-से-क्म एक घण्टा के लिए आना होगा।’’

‘‘आज दोपहर को नहीं।’’

‘‘नहीं! वैसे भी आज मैं दो बजे अपनी माताजी से मिलने जा रही हूँ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book