उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यह क्या होता है?’’ क्या रख सकूँगी?’’
‘‘अपने पर काबू।’’
‘‘तो यह नियन्त्रण होता है?’’
‘‘हाँ, यही अपने पर काबू करना है।’’
इस प्रकार मध्याह्न के खाना खाने के पन्द्रह-बीस मिनट के बाद ननद-भाभी पैदल ही चल पड़ीं।
मार्ग में नगीना ने बताया, ‘‘आज से दो-तीन साल पहले की बात है, हम सब औरतों को कशमकश करनी पड़ी थी बाजार में बिना बुर्के के घूमने के लिए। अब्बाजान और मेरी अम्मी इसके खिलाफ थीं।
‘‘इस पर छोटी अम्मी ने हमारी शिकायत की और हम भूख-हड़ताल कर बैठीं। तीन दिन की भूख-हड़ताल के बाद हमें बिना बुर्के के बम्बई की सड़कों पर घूमने-फिरने की इजाजत मिल गई। मैं तब नवीं जमायत में पढ़ती थी। यह बगावत मेरे लिए बुर्का बनवाने के वक्त शुरू हुई थी। मुझे याद है, उस दिन मैं स्कूल से घर आयी तो एक दर्जिन आई हुई थी। वह दूसरी बेगमों का नाप ले रही थी। अम्मी ने दर्जिन से कहा, ‘‘इस लड़की के बुर्के का भी नाप ले लो।
‘‘वह मेरा नाप लेने लगी तो मैं भागकर कमरे में जा भीतर से कमरा बन्द कर बैठी रही।
‘‘बस, मेरा यह प्रोस्टेस्ट ऐलान हो गया। मेरी अम्मी, मैं और बड़ी अम्मी तीनों ने भूख-हड़ताल कर दी थी।’
‘‘हमीदा अम्मी ने हमारी शिकायत अब्बाजान के पास की। उन्होंने तीनों को डाँटा, मगर हम अपने इरादे पर मुस्तकिल रहीं।’’
‘‘नतीजा यह हुआ कि तीसरे दिन अब्बाजान ने हमको बुलाकर बिना बुर्के के घूमने-फिरने की इजाजत देते हुए कहा, ‘‘मेरी इज्जत तुम सब के हाथों में है। इस पर कोई धब्बा नहीं लगना चाहिए।’’
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