उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो इतने रुपये तुम्हारी जेब में थे?’’
शिव हँस पड़ा। हँसते हुए बोला, ‘‘जब सब खा चुके और कैण्टीन वाला बिल लाया तो मैंने दादा से कह दिया, ‘दादा! दो हरे रंग के नोट जरा देना।’’
‘‘दादा ने दिए तो मैंने कैण्टीन वाले को दे दिए।
‘‘दादा कालिज से तीन बजे चले गए थे, कह रहे थे साढ़े चार बजे तक घर पहुँच जायेंगे।’’
इस समय रविशंकर भी आ गया। उसने नगीना को प्रज्ञा के साथ बैठे देख पहले तो चिन्ता अनुभव की, पीछे शीघ्र ही अपने को सम्हाल कर कहा, ‘‘तो यह है बम्बई वाली लड़की?’’
‘‘जी!’’
‘‘तो तुम्हारे पिता अभी गए नहीं?’’
‘‘पिताजी! उनको तो कल ही हवाई जहाज पर चढ़ा आई थी।’’
‘‘कैसे चढ़ाया था?’’
नगीना ने उठ, खड़े हो, अपना रूमाल निकाल सिर से ऊँचा कर हिलाते हुए कहा, ‘‘इस प्रकार बाई-बाई कह आई हूँ।’’
सब हँसने लगे। रविशंकर के मन का क्षोभ भी शान्त होने लगा था।
महादेवी ने बताया, ‘‘यह कहती है कि यह दिल्ली में ‘हस्बैण्ड-हंटिंग’ के लिए ठहरी है।’’
‘‘ओह! यह तो बहुत मुश्किल काम है। दिल्ली बहुत बड़ी और आजकल बहुत बिगड़ी हुई है। किसकी हंटिंग कर रही हो?’’
‘‘अब्बाजान किसी को तो इस काम पर तैनात नहीं कर गए। हाँ, भले लोगों का अपना दायरा बढ़ा रही हूँ। आप भी अब उसमें शामिल हो जायें तो बहुत मश्कूर रहूँगी।’’
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