लोगों की राय

उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

391 पाठक हैं

खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘मगर तुमसे तो राय करने लोग आज से ही आने लगे हैं। एक हमारे पड़ोस का साधूराम आया था। मैंने उसे डॉक्टर के पास भेजना चाहा था, मगर वह तुमसे ही राय करना चाहता है। मैंने सायंकाल छः बजे बुलाया है। अभी दो घण्टे हैं।’’

चाय समाप्त हुई तो रविशंकर ने अपनी छड़ी उठाई और घूमने चल दिया। शिव अपने कमरे में अपनी पढ़ाई करने चला गया। महादेवी प्रज्ञा को लेकर पृथक् कमरे में चली गई और नगीना उमाशंकर के पास रह गई।

पहले तो वह भी उठकर अपने नियत क्लीनिक में जाने वाला था। फिर यह विचार कर कि नगीना अकेली रह जाएगी, बहन तथा माताजी के आने तक वहीं बैठने का विचार कर, वह नगीना से बातें करने लगा।

उसने कहा, ‘‘उस दिन मैंने एक खिलौना प्रज्ञा को लाकर दिया था। वह मैंने शिकागो में खरीदा था। मुझे बहुत सुन्दर प्रतीत हुआ था। मैं देखता हूँ उस खिलौने से तुम बहुत कुछ मिलती हो।’’

‘‘यह तो आपने उस दिन भी कहा था कि मैं आपको बहुत खूबसूरत दिखाई देती हूँ।’’

‘‘हाँ, याद आ गया है। तुम हो ही ऐसी।’’

‘‘तो ऐसा करिए, इस खिलौने को यहाँ अपनी कोठी में कही टिका दीजिए।’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘जैसे दुनिया-भर के लोग कर रहे हैं।’’

‘‘ओह! तुम तो मुझे ‘प्रोपोज’ कर रही हो?’’

‘‘यह तो उस दिन आपने किया था और आज भी उस दिन कहे की ताईद कर रहे हैं। मैं तो तजवीज़ की मंजूरी दे रही हूँ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book