उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘मगर तुम्हारे अब्बाजान और अम्मी नहीं मानेंगे?’’
‘‘हां, वे दोनों इसकी मंजूरी नहीं देंगे। वे दे सकते भी नहीं। इतने बड़े काम की उनमें तमीज नहीं।’’
‘‘तो फिर यह कैसे हो सकता है?’’
‘‘मैं आपसे कहने आई हूँ कि आप मेरे बालिग होने तक इन्तजार करें। इसमें सिर्फ दो साल बाकी हैं।’’
‘‘पर मेरी माताजी तो अभी से अपने पड़ोसियों, परिचितों और सम्बन्धियों में छानबीन करने लगी हैं?’’
‘‘यही मैं सोच रही हूँ। इसी वास्ते तो मैंने पहला मौका मिलते ही आपसे अर्ज कर दी है कि मैं आपकी तजवीज़ को मंजूर कर रही हूँ।’’
‘‘मगर कुछ और बातें भी तो हैं।’’
‘‘फरमाइये।’’
‘‘तुम अपनी इस मंजूरी का पत्र लिखोगी तो अपनी बनने वाली बीवी के गुण लिख कर भेजूँगा। अभी इतना मंजूर है कि तुम सुन्दर हो, सही दिमाग रखती हो। मगर कुछ दूसरी बातें भी हैं।’’
‘‘देखो, मैं तुम्हें अभी एक चिट्ठी लिखकर दे देता हूँ। तुम उसका उत्तर लिखना। तब पत्र-व्यवहार आरम्भ हो जाएगा। और मेरी कुछ बातें समझ तुम मंजूर करोगी और उनका उत्तर सन्तोषजनक होगा तो मैं दो-तीन वर्ष तक इन्तजार कर सकता हूँ।’’
‘‘तो ऐसा करिए कि भाभीजान के बाहर आने से पहले लिख कर दे दीजिए। मैं उनसे यह बात अभी चोरी रखना चाहती हूँ।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘यह आपको पीछे पता चल जायेगा। पहले देखूँ कि आप मुझे लिखते क्या हैं?’’
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