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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


डॉक्टर उठा और नगीना को वहीं ड्राइंग-रूम में बैठे छोड़ अपने स्टडी-रूम में चला गया। उसने अपना लैटर-फार्म निकाला और एक फार्म पर पत्र लिखने लगा। उसने लिखा—

‘‘डीयर नगीना! मैंने जबसे तुम्हें देखा है, तुम्हें अपने साथ रखने के लिए पसन्द किया है। मैं अपने को सब प्रकार से तुम्हारे योग्य समझता हूँ। मुझे आशा है कि तुम मेरे इस प्रस्ताव को स्वीकार करोगी।

‘‘मैं तुम्हें श्रीमती शुक्ला की उपाधि देना चाहता हूं। तुम अपने बड़ों से सम्मति कर, अपना निर्णय बता सको तो मैं कृतज्ञ रहूँगा।

उत्तराकांक्षी—
उमाशंकर।’’


उमाशंकर ने पत्र अंग्रेज़ी में लिखा था। उसे विदित नहीं था कि नगीना हिन्दी पढ़ सकती है—अथवा नहीं। उसने पत्र को तह किया और अपने छपे लिफाफों में से एक में बन्द कर उनको जेब में रखकर ड्राइंग-रूम में आ गया। इस समय तक प्रज्ञा और महादेवी वहाँ आ चुकी थीं। उमाशंकर को आया देख माँ ने कहा, ‘‘हम समझ रहे थे कि तुम यहाँ नगीना के पास बैठे हो। तुम कहाँ चले गए थे? यह यहाँ अकेली बैठी मक्खियाँ मार रही थी।’’

‘‘पर पिताजी! कमरे में मक्खियाँ तो हैं नहीं।’’ नगीना ने कह दिया।

‘‘मैं यह कह रही हूं कि इसको मक्खियाँ भी नहीं मिल रही थीं मारने के लिए।’’

‘‘मैं जरा बाहर गया था।’’

नगीना समझ रही थी कि डॉक्टर पत्र लिख लाया है, मगर माँ के सामने नहीं दे रहा। वह भी यही चाहती थी, यद्यपि पत्र पाने के लिए बहुत उत्सुक थी।

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