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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


नगीना अपने कमरे में गयी और कागज-कलम ले आई। वह फारसी हरूफ में अरबी की नमाज लिखने लगी। प्रज्ञा और उसके पति प्राणायाम कर रहे थे।

वे श्वाँस को नियमपूर्वक भीतर लेते थे और फिर बाहर निकालते थे। नगीना ने तो नमाज, जो उसे स्मरण थी, छः मिनट में ही लिख ली थी। बकाया समय वह भाभी और भाई को पलथी मारे सीध कमर किये धीरे-धीरे श्वांस भीतर-बाहर करते देखती रही।

ठीक बीस मिनट के बाद में दोनों इस काम से फारिग हुए तो प्रज्ञा ने कहा, ‘‘इसी प्रकार पलथी मारे हुए नमाज मन में ही पढ़ो। पढ़ते हुए मन में इसके मायने भी समझने का यत्न करो।’’

‘‘और देखो! हमसे बात नहीं करना। हम अपनी नमाज पर उसके अर्थ समझने की कोशिश कर रहे होंगे।’’

इसमें पन्द्रह मिनट और व्यतीत हो गये। नगीना अपनी नमाज के इल्फाज मन में तीन बार दुहरा चुकी थी। वह उनके अर्थ तो समझती नहीं थी, इस कारण तीसरी बार पढ़कर भाई-भावज को आँखें मुँदे पलथी मारे बैठा देख मन-ही-मन मुस्कराने लगी थी।

अब प्रज्ञा ने कहा, ‘‘मैं अपनी नमाज का अर्थ आपको समझाती हूँ। आज मैंने अपनी ज्ञान की एक पुस्तक का एक मन्त्र पढ़ा है और उसके अर्थों पर चिन्तन किया है। वह मन्त्र है–

ओं. हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक असीत् सदाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।

इसका अर्थ इस प्रकार है– ‘‘परमात्मा ने हिरण्यगर्भ बनाया है। हिरण्यगर्भ क्या है? सृष्टि बननी शुरू हुई थी ‘मैटर’ से, जिसे हम वेद की भाषा में प्रकृति अथवा स्वधा कहते हैं। यह प्रकृति कणदार अर्थात् बहुत बारीक-बारीक जर्रों में थी। जैसे रेत के बारीक-बारीक जर्रे होते हैं। परन्तु उस प्रकृति के कण रेत के कण से भी बहुत ही बारीक थे। इतने बारीक कि तेज-से-तेज खुर्दबीन से भी अभी तक देखे नहीं जा सके। हमारी आजकल की खुर्दबीन एक वस्तु को एक करोड़ गुना बढ़ाकर देख सकती है। मगर वह भी अभी तक इस कण को देख नहीं सकी। मगर जब ये कण कई-कई मिलकर गुट्ट बना लेते हैं, तब दिखाई देने लगते हैं।’’

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