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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘यह बड़े-बड़े गुट्ट कैसे बनते हैं? इसका ढंग यह बताया है कि प्रत्येक प्रकृति का कण, जिसे ऐटम कहते हैं, अपने में तीन प्रकार की ताकतें रखता है। वे तीनों ताकतें एक-दूसरे की विरोधी होने से एक-दूसरे को शान्त अर्थात् ‘न्यूट्रलाईज़’ करती रहती हैं। इस कारण प्रत्येक परमाणु शान्त होता है।’’

‘‘ये तीन शक्तियाँ हैं नेगेटिव विद्युत्; इसे वेद की भाषा में रजस् कहते हैं। दूसरी शक्ति है पॉजिटिव विद्युत्। इसे अपनी भाषा में सत्त्व कहा है और तीसरी न्यूट्रल है। इसे तमस् कहा है। ये तीनों शक्तियाँ प्रत्येक परमाणु में इस प्रकार सन्तुलित अर्थात् बैलेंस होती हैं कि परमाणु पर किसी भी बिजली का आवेश अर्थात् चार्ज नहीं होता।

‘‘सृष्टि-रचना के समय एक बहुत जबरदस्त ताकत पैदा होती है और वह प्रत्येक परमाणु से सम्पर्क बना उसके भीतर तीनों ताकतों का मुख बाहर को कर देती है। शक्तियाँ बाहर को मुख किए अपने पड़ोस के परमाणुओं पर प्रभाव जमाने लगती हैं।’’

‘‘एक परमाणु की ऋण विद्युत् पड़ोस के परमाणु की धन विद्युत को अपनी ओर आकर्षित करने लगती है। इसी प्रकार एक की धन शक्ति दूसरे की ऋण अथवा शून्य शक्ति वाली तरफ को अपनी ओर खेंचने लगती है। इससे परमाणुओं में गति अर्थात् हरकत पैदा हो जाती है। गति से गरमी पैदा होती है। इतनी अधिक कि परमाणु गरम हो चमकने लगते हैं। यह हिरण्यगर्भ कहलाता है।’’

‘‘ऐसे चमकने वाले परमाणुओं के बादल तो अभी भी आसमान में घूम रहे हैं। उन्हें वैज्ञानिक ‘नेबुला’ कहते हैं। यह नेबुला ही हिरण्यगर्भ है।’’

‘‘बस, दस मिनट हो गये है। आज की बात समाप्त कर रही हूँ।’’

‘‘मगर भाभी! इसमें खुदा कहाँ है?’’ नगीना ने पूछ लिया।

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