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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘वह शक्ति जो करोड़ों, अरबों और पद्मों परमाणुओं में शक्ति के सन्तुलन को भंग कर उनका मुख बाहर को करती है, उसका वृत्तान्त इसमें बताया है।’’

‘‘वह शक्ति जिसके पास है, बस, वही परमात्मा है। पृथ्वी पर रहने वाले किसी भी प्राणी में वह शक्ति नहीं है। इस कारण परमात्मा मनुष्यों से ऊपर है। वह आसमान में चमकने वाले तारों और कड़कने वाली बिजली से भी अधिक बलशाली है। घर में प्रकाश करने वाली बिजली तो उस शक्ति का एक नगण्य अंश है। जिस किसी के पास उतनी शक्ति है, यह परमात्मा है।’’

बात समाप्त हुई तो ज्ञानस्वरूप उठ पड़ा और अपने स्टडीरूम में चला गया। प्रज्ञा उसके पीछे-पीछे चली गई। नगीना इस प्रथम पाठ पर विचार करती हुई अपने कमरे में आ गई। वह विचार कर रही थी कि यदि वह शक्ति आसमान में चमकने वाली बिजली से भी सहस्रों और लाखों गुना बलवान है तो वह कहाँ है? ‘नेबुला’ के विषय में तो उसने भी सुन रखा था, परन्तु ये बनते कैसे हैं, आज उसकी भाभी ने बताया था।

मध्याह्न के भोजन के उपरान्त वह प्रज्ञा के साथ ही उसके कमरे में चली गई। प्रज्ञा ने उसको अपने पीछे-पीछे आते हुए देखा तो बोली, ‘‘आओ नगीना बहन! किसलिए आई हो?’’

‘‘भाभीजान! कुछ काम कर रही हैं इस वक्त?’’

‘‘मैं खाली तो एक क्षण के लिए भी नहीं बैठती। बैठ सकती भी नहीं। कोई भी इन्सान खाली नहीं बैठता। जब तक वह जागता रहता है, उसका मन कुछ-न-कुछ करता रहता है। मन निश्चल नहीं बैठ सकता।’’

‘‘मगर आपकी सुबह की बात मुझे ठीक समझ नहीं आई।’’

‘‘यह इसलिए कि तुम पहले दिन आई हो और तुम अभी बहुत-सी बातें नहीं जानती हो जो तुम्हारे भाईजान जानते हैं। इसलिए उनकी जानी हुई बातों को उस समय दुहराया नहीं गया।’’

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