उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
इस पर तो नगीना घबरा उठी। उसने पत्र वापस लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अम्मी! कभी हम बच्चों की कुछ बातें बड़ों से छुपाने की हो सकती हैं।’’
‘‘मगर,’’ सरवर ने मुस्कराते हुए और पत्र को नगीना के हाथ से दूर करते हुए कहा, ‘‘बेटी! शादी के बाद खाविन्द की बात तो छुपाने की हो सकती है। हाँ, आजकल के जमाने में शादी से पहले भी कई बातें हो सकती हैं।’’
सरवर नगीना के सामने से उठी और कमरे से निकल गई। नगीना परेशानी में उसे जाते देखती रह गई।
सरवर सीधी प्रज्ञा के कमरे में गई। प्रज्ञा एक पुस्तक पढ़ रही थी। उसने अपनी सास को आते देखा तो प्रश्नभरी दृष्टि से उसका मुख देखने लगी। सरवर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘जरा इस चिट्ठी को पढ़ना।’’
प्रज्ञा ने चिट्ठी पर पता देखा तो पहचान गई कि उसके भाई की है। इस कारण उसने कहा, ‘‘अम्मी! यह तो नगीना के नाम है। आपको किसने दी है?’’
‘‘दी नहीं! डाक से आई है। मैं समझी थी कि बम्बई से आई है और नगीना से वहाँ के हालात जानने के लिए उससे सुनने गई। मगर वह कहती है कि उसके किसी जान-पहचान वाले की दिल्ली से आई है। ऐसा कहते-कहते उसकी जबान लड़खड़ा रही थी और गालों पर लाली आ गई थी। इससे मुझे दाल में कुछ काला समझ आया है।’’
‘‘पर अम्मी! किसी दूसरे की चिट्ठी बिना उसके कहे, पढ़ना मैं ठीक नहीं समझती।’’
‘‘मगर वह किसी को मुहब्बत की चिट्ठियाँ भी तो लिख सकती है। मुझे यही समझ आया है। वह मेरी सरपरस्ती में है। इस वास्ते मैं अपनी जिम्मेदारी समझती हूँ।’’
‘‘इन हालात में उसे मजबूर करना चाहिए कि वह स्वयं ही चिट्ठी खोलकर सुना दे।’’
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