उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यह कैसे किया जा सकता है? आजकल की जवान लड़कियाँ काबू से बाहर हो सकती हैं।’’
‘‘पर अम्मी! जबरदस्ती करने से तो बगावत भी कर सकती है। उनसे मुहब्बत से इसरार किया जा सकता है।’’
नगीना सरवर को पत्र लेकर वहाँ आते देख पीछे-पीछे चली आई थी। कमरे के द्वार के बाहर ओट में खड़ी वह सुन रही थी कि क्या बातें हो रही हैं। वह प्रज्ञा की युक्ति को सुन सुख अनुभव कर रही थी।
प्रज्ञा ने उसे कहा था कि वह झूठ नहीं बोलेगी। हाँ, अपने आप उसके रहस्य की डुग्गी नहीं पीटेगी।
इस कारण वह समझ रही थी कि बात खुलने ही वाली है। इस समय उसे सरवर यह कहती सुनाई दी, ‘‘तो तुम ही उससे मुहब्बत से इसरार कर जानने की कोशिश करो। वह तुम्हारी शागिर्द तो है।’’
पूर्व इसके कि प्रज्ञा कहे कि वह जानती है, पत्र कहाँ से आया है, नगीना द्वार का पर्दा एक ओर हटाकर भीतर आ गई और बोली, ‘‘अम्मी! लाइये, मैं पढ़कर सुना देती हूँ।’’
‘‘तो तुम इसरार मान गई हो?’’
नगीना मुस्कराई। उसने सरवर के कहने का उत्तर नहीं दिया और पत्र लेकर खोल डाला और फिर सरवर के समीप बैठ पत्र पढ़ने लगी।
पत्र उर्दू में था। लिखा था—‘‘प्यारी नगीना! उस दिन तुम्हारे वहाँ से चले जाने के बाद माताजी ने पिताजी के सामने तुम्हारे साथ मेरी शादी की बात की तो पिताजी ने फौरन कह दिया, पहले ही इस खानदान से हमारे सम्बन्ध बहुत गहरे हो चुके हैं। अब और गहरे नहीं होने दूँगा।’’
‘‘बिना इस बात को बताए कि मैंने तुम्हें अपने पत्र में तजवीज़ किया है, मैंने पिताजी से कहा, ‘‘मैं समझता हूँ कि रंग इतना गहरा हो चुका है कि इससे और गहरा नहीं हो सकता, भले ही उस घर की सब लड़कियों से मेरा विवाह हो जाये।’’
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