उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘यह कैसे कर सकोगे?’ पिताजी का प्रश्न था।
‘शादी करने पर भी अभी एक से और करने की गुँजायिश होगी।’ कहते-कहते मेरी हंसी निकल गई।
‘‘इन मुसलमानों से मैं किसी किस्म का ताल्लुकात नहीं रखना चाहता।’
‘‘मेरा कहना था, ‘इस पर भी वे खुदापरस्त तो है!’’
‘‘पिताजी ने कहा, ‘उनकी खुदापरस्ती तो और भी बुरी है। वे गाय का दूध पीते हैं और उसका मांस भी खाते हैं। इसी तरह लड़का अपने चाचा की लड़की यानी बहन से शादी कर सकता है। यहाँ तक कि अगर एक माँ के दो खाविन्दों से भाई-बहन हों तो उनमें भी शादी हो सकती है।’’
‘‘मैंने कहा, ‘यह वास्तविकता का लक्षण नहीं है। न ही यह आस्तिकता का लक्षण है कि एक लम्बे पत्थर को शिव मान उस पर जल चढ़ाया जाये।’’
‘‘मेरी इस तुलना पर पिताजी के माथे पर त्यौरी चढ़ गई। माताजी समझ गयीं कि झगड़ा होने वाला है। इस कारण उन्होंने कह दिया, ‘तुम दोनों दाढ़ी-मूँछ वाले संज्ञान पुरुष, किसी विषय पर बात भी नहीं कर सकते। तुम्हारे पढ़े-लिखे पर मुझे आश्चर्य होता है।’’
‘‘पिताजी ने अभी भी गुस्से में कहा, ‘कर तो रहे हैं। तुम करने भी दो।
‘‘देखो उमा! मैं तुम्हारा विवाह उस लड़की से पसन्द नहीं करता!’
‘पिताजी!’ मैंने अब शान्ति से कहा, ‘वह बहुत सुन्दर है।’
‘‘उनका सवाल था, ‘तो तुमने उसे मंजूर कर लिया है?’
‘‘मैंने कहा, ‘मेरे कहने का अर्थ यह नहीं कि सब सुन्दर लड़कियों से विवाह ही किया जाता है। हाँ, सुन्दर लड़कियों में से ही पत्नी को चुनूँगा। इसी कारण उसकी बाबत भी विचार हो सकता है।’’
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