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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘मगर वह मुसलमान है?’

‘इसका विवाह के साथ क्या सम्बन्ध है? मैं यदि अमेरिका से कोई विवाह कर ले आता तो फिर उसके ईसाई होने से शादी नाजायज हो जाती क्या?’

‘‘इस पर माताजी ने हंसते हुए कहा, ‘वह अक्लमंद भी बहुत है।’

‘खाक अक्लमंद है!’ पिताजी ने कहा, ‘अब इस विषय पर बात बन्द करो।’

‘‘मैंने बात बदल दी और अपने प्रोफेशन की बात कर दी। मैंने कहा, ‘आपके पड़ोसी चिकित्सा-सम्बन्धी राय करने आए थे। मैंने उन्हें नुस्खा लिख दिया है। वह दस रुपये फीस दे गए हैं। मैंने कहा भी था, रहने दें। परन्तु उन्होंने रुपये मेज पर रखे और चल दिए।’

‘‘सो, नगीना! मेरे कारोबार की बातें होने लगीं और उसके उपरान्त अभी तक न तो तुम्हारी, न ही किसी अन्य लड़की के विषय में बात हुई है।’’

‘‘अब तुम्हारी चिट्ठी आई है और मेरा उत्तर यह है कि मैं तुम्हारे वयस्क होने तक इन्तज़ार करूँगा।’’

जब नगीना चिट्ठी पढ़ चुकी तो सरवर ने पूछा, ‘‘यह तो तुमने बताया ही नहीं कि यह खत है किसका?’’

‘‘अम्मी! जो आपका दामाद बनने की उम्मीद कर रहा है। पहले यह बताइए कि आप अपनी बेटी की इल्तजाह मानेंगी या नहीं? तब उनका नाम बताऊँगी।’’

‘‘क्यों बहू! तुम समझ गई हो?’’

‘‘हाँ! मैं तो लिफाफे पर लिखा खत भी पहिचान गई हूँ।’’

‘‘कौन है?’’

‘‘क्यों नगीना बहन! बता दूँ?’’

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