उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो यह चिट्ठी उसने तुम्हें दिखाई है?’’
‘‘नहीं! इत्तफाकिया डाकिया मेरे हाथ में डाक दे गया था। उसमें नगीना के नाम की चिट्ठी भी थी। मैं समझी थी कि बम्बई से आयी है।
‘‘नगीना ने पढ़कर सुनाने में हिचकिचाहट जाहिर की तो मैं तुम्हारी बीवी के पास पहुँच गयी। वह बताने ही वाली थी कि नगीना आयी और उसने चिट्ठी पढ़कर सुना दी। वह जानती थी कि उसकी भाभी इस चिट्ठी लिखने वालो को जानती है और वह झूठ कभी नहीं बोलेगी।’’
‘‘उसने लिखा है कि वह नगीना के बालिग होने तक उसका इन्तज़ार करेगा।’’
‘‘और अम्मी! आप क्या चाहती हैं?’’
‘‘मेरे चाहने की बात नहीं। यह उसके माता-पिता के चाहने की बात है। मैं यह बात चोरी-चोरी अपने साये में नहीं होने देना चाहती।’’
‘‘तो ऐसा करो, अम्मी! तुम यहाँ के हालात बम्बई लिख दो।’’
‘‘मैं चाहती थी कि तुम लिखो।’’
‘‘मैं नहीं लिखूँगा। जब तक दोनों में से कोई लिखने को नहीं कहता, तब तक मैं नहीं लिखूँगा।’’
‘‘और यदि लड़की ने वैसे ही शादी कर ली जैसे तुमने की है तो?’’
‘‘उसे बालिग होने तक नहीं करनी चाहिये। मैं प्रज्ञा को कहूँगा कि वह इस पर नजर रखे। यही तो हम कर सकते हैं। यह नजर रखने की बात भी तो दो साल तक है। पीछे तो वह आजाद है।’’
‘‘मगर यह शरअ नहीं है। शरअ की रूप से तो एक औरत सारी उम्र किसी न किसी मर्द के मातहत रहती है।’’
‘‘मगर इस मुल्क के कानून ने शरअ के दायरे को महदूद कर रखा है। अतः शरअ की यह बात यहाँ नहीं मानी जाती। अगर कोई खाविन्द अपनी बीवी को पीटे तो वह खाविन्द से पृथक् रहने और अपने लिए गुजारे का दावा कर सकती है। शादी टूट नहीं सकती, और वह बीवी को वस्ल के लिये मजबूर नहीं कर सकता।’’
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