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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘मगर...।’’ वह कहती-कहती रुक गयी।

‘‘मगर क्या?’’

‘‘अब नहीं बताऊँगी। मैं समझती थी कि बीवी को पीटना खाविन्द के हकबकूक में है।’’

सरवर ने आगे कहा, ‘‘देखो यासीन! इस लड़की की शादी तुम्हारे अब्बाजान यहाँ मंजूर नहीं करेंगे।’’

‘‘पर अम्मी! उनका मना करने का हक महदूद है। वह लड़की अथवा लड़के के नाबालिग रहने तक ही है। इसीलिये तो अब्बाजान मेरी शादी पर एतराज नहीं कर सके। छः महीने तक उन्होंने मेरी चिट्ठियों का जवाब नहीं दिया। अब एक खास वजह पैदा हो गई है जिससे वे सब यहाँ आए थे। वे यहाँ रहे हैं और मुझे इस बात का हुक्म दे गये हैं।’’

‘‘क्या हुक्म दे गये हैं?’’

‘‘यही कि मुझे नगीना से शादी करनी है और इसके लिये मुझे प्रज्ञा को पीट-पीटकर घर से निकाल देना है। जब वह तलाक के लिये कहे तो मैं मान जाऊँ।’’

‘‘अम्मी! मैंने कहा था कि बिना वजह के मैं पीट नहीं सकता। वह बोले कि वजह तो है। उसे घर से निकालना है और यह काफी वजह है।’’

‘‘और तुम्हारे वालिद अपने को खुदा से ऊपर मानते हैं?’’

‘‘मैंने उन्हें खुदापरस्त कभी भी तसव्वर नहीं किया।’’

‘‘और तुम खुदा को मानते हो?’’

‘‘यकीनन मानता हूँ। अम्मी! जो नक्शा खुदा का प्रज्ञा ने मेरे दिमाग में बैठाया है, वह उस खुदा से मुख्तलिफ है जो मेरे दिमाग में था।’’

‘‘क्या नक्शा बना है अब?’’

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