उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
वासना की लत तो लग गई थी। अतः वह वेश्याओं के पास जाने लगा। नई नौकरी मिली नहीं और जेब खाली होने लगी। इस पर कृष्णकांत को जुए का चस्का लग गया।
लॉज में युवकों में थोड़ा-बहुत जुआ चलता था, परन्तु कृष्णकांत ने इस ओर रुचि प्रकट नहीं की। अब धनाभाव में वह इसके चक्कर में पड़ गया।
इसमें वह भाग्य का धनी निकला। अपना खर्चा और इधर-उधर वेश्याओं के कटरे का खर्च उसे मिलने लगा।
फिर भी उसकी आर्थिक स्थिति कुछ नहीं थी। ऐसे अवसर पर एक दिन उसे कात्यायिनी का पत्र आया, ‘‘तुरन्त चले आओ। आशा है कि यहाँ विवाह हो सकेगा।’’
जिस समय यह पत्र आया, उस समय कृष्णकांत की जेब में कुछ ही रुपए थे। इससे परेशानी में वह कात्यायिनी के पत्र को देखता रह गया।
उसी सायंकाल उसने वे रुपए दाँव पर लगा दिए। भाग्य से वह तीन सौ रुपए के लगभग जीत गया।
उसके साथी उस सायंकाल उसके भाग्य को उच्च में देख उसकी प्रशंसा करते हुए पूछने लगे, ‘‘आज कहाँ जाने का विचार है?’’
‘‘कहीं नहीं। दिल्ली में एक है, यह उसके भाग्य का है। मैं कल विवाह करने दिल्ली जा रहा हूं।’’
सब उसका मुख देखने लगे। परन्तु कृष्णकांत के मन में विश्वास हो गया था उसके भाग्य में दिल्ली वाली लड़की से विवाह लिखा है। तभी तो उसके नाम से दाव लगाते ही उसकी जीत होने लगी थी।
अगले दिन वह जनता एक्सप्रेस से दिल्ली को चल पड़ा।
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