उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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प्रो० सुदर्शन के घर चाय पीकर नलिनी घर लौटी तो नागपुर से आया खड़वे उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वह मद्रास जनता से आया था और पाँच बजे के लगभग घर पहुंचा था।
कात्यायिनी ने उसके स्नानादि तथा अल्पाहार का प्रबन्ध कर दिया था। अल्पाहार के उपरान्त वह नलिनी के कमरे में अंग्रेजी की से तीन-चार पुस्तके उठाकर ले आई और उसे देते हुए बोली, ‘‘भाई साहब! आप अभी इनको पढ़िए। नलिनी आती ही होगी। तब परस्पर बात कर लेना। वैसे तो मैंने तथा माताजी ने उसके मन को तैयार कर रखा है। तनिक सावधानी से बात करेंगे तो पत्नी-सहित नागपुर जा सकेंगे।’’ इतना कह कात्यायिनी बाहर चली गई
कृष्णकांत एक पुस्तक उठाकर पढ़ने लगा।
इन दिनों दिल्ली नगरी एक महान् आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थी और कृष्णकांत अपनी होने वाली पत्नी से अधिक दिल्ली देखने के लिए उत्सुक था। फिर भी वह किसी प्रकार से अपनी पढ़ी-लिखी सम्भावित पत्नी को रुष्ट नहीं करना चाहता था। अतः वह प्रतीक्षा करने लगा।
कात्यायिनी स्वयं अंग्रेजी जानती नहीं था। इस कारण बिना यह देखे कि वह कौन-सी पुस्तक ला रही है, नलिनी की मेज पर से पुस्तकें उठाकर ले आई थी। कृष्णकांत एक पुस्तक उठाकर पढ़ने लगा। यह पुस्तक एक अमेरिकन नावल था। नाम था ‘किग्ज़रो’। पढ़ने लगा तो वह उसमें इतना लीन हो गया कि उसको समय का ध्यान ही नहीं रहा। वह भूल गया कि वह किसी की प्रतीक्षा में बैठा है। छः बजे, सात बजे फिर आठ बज गए। बैठक-घर में लगी घड़ी प्रत्येक घण्टे के पश्चात् टन-टन कर समय बता रही थी, परन्तु खड़वे ‘‘किग्ज़रो’ के पृष्ठ पर पृष्ठ पढ़ता चला जाता था। आठ बजे नलिनी की माँ आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा! भोजन करोगे?’’
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