उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘ओह!’’ समय देखते हुए खड़वे ने कहा, ‘‘आठ बज गए। खैर! दस बजे तक तो प्रतीक्षा की ही जा सकती है।’’
माँ मन-ही-मन नलिनी पर नाराज थी कि आज ही घर से बाहर भटक रही है। भला खड़वे पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा; परन्तु वह चुपचाप रसोई में चली गई। प्रोफेसर चन्द्रावरकर आया तो वह खड़वे के पास बैठकर अपनी ससुराल वालों के समाचार पूछने लगा। यद्यपि खड़वे उससे बात करने की अपेक्षा उपन्यास पढ़ने में अधिक रुचि ले रहा था फिर भी जब प्रोफेसर बैठ गया तो उसने उपन्यास एक ओर रख दिया।
साढ़े नौ बजे सुमति और निष्ठा नलिनी को अपनी कार में छोड़ने आई। मोटर घर के बाहर खड़ी हुई तो नलिनी ने उतरते हुए समुति तथा निष्ठा को भीतर चलने के लिए कहना आरम्भ कर दिया। निष्ठा घर शीघ्र लौटने का विचार रखती थी। सुमति अनिश्चित मन थी। इस समय कात्यायिनी बाहर मोटर के समीप आकर कहने लगी, ‘‘कहाँ रही इतनी देर तक?’’
नलिनी ने भाभी की डाँट से बचने के लिए कह दिया, ‘‘भाभी! यह प्रो० सुदर्शन की बहन निष्ठा और उनकी यह पत्नी सुमति जी हैं।’’
‘‘ओह, नमस्कार! बहुत कृपा की है जो आज आप आई हैं। सुदर्शन जी साथ है क्या?’’
‘‘नहीं, वे नहीं आए। हम भी तो नलिनी बहन को छोड़ने आई हैं।
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