लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


वास्तव में भाभी! हम तो आपके निमंत्रण की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’’

कात्यायिनी ने मुस्कराकर कह दिया, ‘‘अब हम आशा कर रहे हैं कि बहुत शीघ्र ही आपको बुलाएँगे जिससे आप सब नलिनी को ससुराल विदा कर सके।’’

‘‘सच? यह तो बहुत ही प्रसन्नता की बात होगी। कहाँ बना रही है इनकी ससुराल?’’

नलिनी समझी कि नागपुर से किसी प्रकार का सन्देशा आया है। इस कारण उसने सुमति को विदा करना ही उचित समझा। उसने कह दिया, ‘‘अच्छा भाभी! अब आप चलिए। पहले ही बहुत देर हो रही है। भैया परेशान हो रहे होंगे।’’

सुमति तथा निष्ठा जब कार में बैठकर चली गई तो कात्यायिनी ने तनिक डाँटकर कहा, ‘‘बताकर तो जाया करो कि कब तक आने वाली हो। हम चिन्तित मन तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।’’

‘‘भाभी! मैं दूध पीती बच्ची नहीं हूँ।’’ यह कहती हुई नलिनी मकान के भीतर चली गई। ज्योंही बैठक में झाँकी कि उसको खड़वे की रूपरेखा का व्यक्ति श्रीपति से बातचीत करता हुआ दिखाई पड़ा। उसने खड़वे का फोटो भलीभाँति देख लिया था। यद्यपि फोटो की तुलना में साक्षात् घटिया प्रतीत हो रहा था तथा अधिक कृष्णवर्ण का दिखाई दे रहा था, फिर भी पहचाना तो जा सकता था। नाक, कान वैसे ही थे। छाती कुछ अधिक चौड़ी थी और ऊँचाई अनुमान से कुछ कम लगती थी। वह द्वार में खड़ी एक ही दृष्टि में समझ गई थी। उसे आया देख श्रीपति तथा खड़वे दोनों खड़े हो गए। श्रीपति ने कह दिया, ‘‘आओ नलिनी! ये नागपुर से मिस्टर कृष्णकांत खड़वे आए हैं।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book