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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘मैं स्कूल से सीधी शापिंग करने चली गई थी। बाज़ार में भैया के एक मित्र डॉक्टर सुदर्शन की पत्नी मिल गई। वे अपने घर ले गईं और जब भोजन के लिए आग्रह करने लगीं तो मैं इन्कार नहीं कर सकी। बहुत कष्ट हुआ है आपको।’’

नलिनी मन में विचार कर रही थी कि जनता ऐक्सप्रैस का यात्री, पौने दो सौ रुपया, महीना कमाने वाली अध्यापिका तथा एक प्रोफेसर की बहन से विवाह करने चला आया है, इसको लज्जा आनी चाहिए।

कृष्णकांत मन में विचार कर रहा था कि लड़की तो बहुत पढ़ी-लिखी तथा सभ्य प्रतीत होती है। यह नागपुर में उससे विवाह के लिए प्रस्तावित सभी लड़कियों से अधिक सुन्दर, अधिक-पढ़ी-लिखी तथा समझदार प्रतीत होती है।

यह सभा-समाज में घूमती-फिरती है। इसके परिचित कार में आते-जाते हैं। यदि इसको उसकी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो गया तो काम नहीं बनेगा। उसने अपने परिवार वालों की बातें बढ़ा-चढ़ाकर बतानी आरम्भ कर दीं।

कात्यायिनी समीप ही बैठी थी। वह अपने परिवार वालों के विषय में बहुत कुछ जानती थी, इस कारण उसको सबसे पहले ज्ञान हुआ कि खड़वे अनृत भाषण कर रहा है। अतः वह उठकर भीतर चली गई। इसके कुछ देर बाद श्रीपति भी उठा और कहने लगा, ‘‘मुझे बहुत प्रातःकाल अपना लैक्चर तैयार करने के लिए उठना है, इस कारण मैं तो सोऊँगा। आप भोजन समाप्त कर सो जाइएगा। कल अल्पाहार के समय अगले कार्यक्रम पर विचार करेंगे। इसके पश्चात् उसने नलिनी से कहा, ‘‘इनके लिए यह साथ वाले कमरे में बिस्तर लगा है और ये छत्तीस घंटे की यात्रा से थके हुए हैं। इनके सोने का स्थान दिखा देना।’’

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