उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘माताजी से विवाह पर कुछ काम के विषय में पूछने के लिए।’’
नलिनी उठकर बैठक में चली गई। सुदर्शन ने उसे देख कह दिया, ‘‘नलिनी! बहुत-बहुत बधाई हो। मैं बहुत ही प्रसन्न हूँ।’’
नलिनी ने मुस्कराकर कहा, ‘‘आपकी पत्नी ने यह सोने की चैन मेरे गले में डाली तो मैंने इसको मंगलसूत्र मानकर स्वीकार कर लिया था और देखिए, उसके कुछ ही काल बाद इस मंगल-कार्य का श्रीगणेश हो गया। मेरी ओर से भाभी को धन्यवाद कहिएगा। सायंकाल मैं उनसे मिलने स्वयं आऊंगी।’’
‘‘ठीक है। मैं तो देर से ही घर लौट सकूँगा। माँजी ने मुझे करने को एक काम बताया है। शामियाने, मेज-कुर्सी आदि तथा रोशनी का प्रबन्ध मुझे करना है।’’
‘‘एक काम मैं भी कहूँ। करिएगा?’’
बताओ ।’’
‘‘अपने पिताजी की मोटरगाड़ी ड्राइवर-सहित तीन दिन के लिए हमारी सेवा में दे दीजिए।’’
‘‘मैं अभी दुकान पर फोन करता हूँ, घंटे-भर में गाड़ी आ जाएगी।’’
शनिवार रात्रि को भी, नलिनी तथा कृष्णकान्त खड़वे बहुत देर तक खड़वे के कमरे में बैठे भविष्य की योजना बनाते रहे। रविवार रात्रि, विवाह के उपरान्त तो उनको शकुनपूर्वक एक ही कमरे में सोने के लिए कहा गया।
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