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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘जब आप लिखेंगे कि मेरे लिए मकान ठीक कर लिया है।’’

‘‘तुम्हारे लिए नौकरी भी तो ढूँढ़नी पड़ेगी।’’

‘‘ढूँढ़ लीजिएगा। एक चौका-बासन करने के लिए नौकरानी का भी प्रबन्ध होना चाहिए।’’

‘‘जो कुछ अपनी सामर्थ्य में है, हो जाएगा। मैं दो सौ रुपया महीना ही पाता हूँ।’’

अगला दिन भ्रमण में और दिल्ली की सैर में व्यतीत हो गया। दोपहर वे घर पहुँचे तो कई परिचित घरों की स्त्रियाँ बधाई देने आई हुई थीं। सुमति और निष्ठा भी आईं। उसी सायंकाल खड़वे ग्रांड ट्रंक एक्सप्रेस से नागपुर के लिए विदा हो गया। सुमति तथा निष्ठा उसको स्टेशन पर विदा कर, अपनी कार में वापस कोठी पर लौट आईं। घर पहुँचकर सुमति ने एकान्त में अपने पति को बता दिया, ‘‘मुझको नलिनी का पति एक छटा हुआ गुण्डा प्रतीत होता है।’’

‘‘क्यों, क्या हुआ है?’’

‘‘मुझसे भी छोड़खानी करने लगा था।’’

‘‘क्या कहता था?’’

‘‘ऐसे लोग कुछ कह नहीं सकते। वे कहना जानते भी नहीं, केवल पशुओं की भाँति सींग चलाना जानते हैं। परन्तु उनको विदित नहीं होता कि संसार में मनुष्य पशुओं पर राज्य करने के लिए बना है और वह लाठी से उनके झुण्ड-के-झुण्ड हाँककर ले जाता है।’’

‘‘तो उसने तुम पर सींग चलाया था?’’ मुस्कराते हुए सुदर्शन ने पूछ लिया।

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