उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
‘‘जब हम पकड़कर आगरा शहंशाह के सामने उपस्थित किए गए थे तो सुन्दरी से महारानी मिली थीं। वहीं पता चला कि आपने उसके जन्म की बात शहंशाह से कही थी और यह भी कि सुन्दरी ने कुछ भी गुनाह नहीं किया। इसी आधार पर हमारी जान बख्सी गई है।’’
‘‘देखो निरंजन! यह बात इस तरह नहीं जैसी तुम कह रहे हो।’’ इस समय निरंजन भी एक खाट पर सामने बैठ गया था। राधा भूमि पर बैठ गई थी। सुन्दरी तो भीतर भगवती और मोहन की पत्नियों से मिलने गई हुई थी।
विभूतिचरण ने बताया, ‘‘मैंने अपनी विद्या से सुन्दरी के जन्म, उसके माता-पिता का पता किया था और शहंशाह को बताया था। इससे शहंशाह यह समझा था कि सुन्दरी एक मुसलमान लड़की है। उस मुसलमान का एक हिन्दू विधवा ब्राह्मणी से सम्बन्ध बना था और सुन्दरी पैदा हो गई थी। लोक-लाज से डरते हुए वह विधवा यहाँ सराय में छुपकर प्रसव करने आई थी और लड़की को जन्म देकर मर गई थी।
‘‘शहंशाह यह समझता है कि मुसलमान की औलाद से मुसलमान ही पैदा होता है। इस कारण वह सुन्दरी को मुसलमान खातून समझता है और तुम एक मुसलमान खातून के खाविन्द होने से मुसलमान हो। यह मुसलमानों की शरा है।’’
‘‘और पण्डित जी! आप क्या समझते हैं?’’ राधा ने पूछ लिया।
‘‘देखो राधा! बीज न मुसलमान होता है और न हिन्दू। यह तो इनसान का बीज है। इससे पैदा होते समय जब इनसान ऐसे एक समान होते हैं जैसे गेहूँ के दाने।’’
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