उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
‘‘यदि मुसलमान के बीज से मुसलमान ही होना हो तो वह एक हिन्दू औरत के पेट में अंकुरित न हो सकता। जैसे एक कुत्ते का बीज बिल्ली के पेट में फल नहीं सकता। कुत्ता और बिल्ली भिन्न-भिन्न जातियाँ हैं। मगर मुसलमान और हिन्दू तो एक ही जाति हैं। यदि ऐसा न होता तो एक मुसलमान से हिन्दू औरत के अथवा एक हिन्दू पुरुष से मुसलमान औरत के सन्तान न हो सकती।’’
‘‘तो हिन्दू मुसलमान कैसे होते हैं?’’ नूरुद्दीन ने पूछा।
‘‘अपने अमालों से। सुन्दरी हिन्दू लड़की ही थी, परन्तु अब तुम उसे मुसलमान बना रहे हो।’’
‘‘कैसे?’’
‘‘उसके अमालों को बदलकर।’’
‘‘क्या बदला है?’’
‘‘तुमने उसको बुर्के में बन्द कर दिया है। इससे उसकी दृष्टि सीमित और उसका अनुभव न्यून हो जाएगा। वह मुसलमान हो जाएगी। अभी हुई है अथवा नहीं, कहा नहीं जा सकता। मगर तुमने उसे मुसलमान बनने की राह पर डाल दिया है।’’
‘‘हमारे गाँव में एक मुल्ला रहता है। वह हर शुक्रवार आता है और हमें नमाज़ सिखाता है। नमाज़ पढ़ने का ढंग बताता है। यह बुर्का और पर्दा भी उसने ही बताया है। मुझे तो यह पसन्द नहीं।’’
विभूतिचरण हँस पड़ा। वह अपने मुख से कुछ नहीं कहना चाहता था। किसी मुसलमान को इस्लाम से बदज़न करना एक अपराध था। इस कारण उसने केवल इतना ही कहा, ‘‘तो वह मुल्ला इसको मुसलमान बनाने की कोशिश कर रहा है?’’
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