उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
‘‘मगर पण्डित जी! वह तो कहता है कि मुसलमान की औलाद मुसलमान के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकती।’’
‘‘यह बात अक्ल नहीं मान सकती। अगर एक मुसलमान की औलाद मुसलमान ही हो सकती है तो एक हिन्दू की औलाद हिन्दू ही होनी चाहिए। तो नूरुद्दीन एक हिन्दू के अलावा और कुछ नहीं हो सकता।’’
निरंजन तो भौंचक्का मुख देखता रह गया। राधा ने पूछ लिया, ‘‘तो नाम बदलने से यह मुसलमान नहीं हुआ?’’
‘‘नाम तो यह कुछ भी रख सकता है। यदि भगवान राम और कृष्ण को अपना पूज्य मानता है तो यह मिर्ज़ा नूरुद्दीन नहीं, पण्डित नूरुद्दीन ही होगा। हमारा धर्म तो उसके सिद्धांत मानने से ही होता है। बुर्का पहनने से अथवा सुन्नत करने से न होता है और न मिटता है।’’
‘‘पण्डित जी! आपको भगवान सौ वर्ष तक जीवित रखे। यही तो मैं मोहन के पिता को कहती थी, मगर उसकी समझ में बात आती ही नहीं।’’
विभूतिचरण ने मुस्कराते हुए पूछ लिया, ‘‘और क्या निरंजन की समझ में आ गई है यह बात?’’
निरंजन ने कहा, ‘‘पण्डित जी! मैं तो अपने को अभी भी हिन्दू ही मानता हूँ। मगर सुन्दरी कहती है कि नगर चैन में रहते हुए वह कई बार गोमांस खा चुकी है।’’
‘‘इससे पेट खराब होता है। मगर कोई हिन्दू से मुसलमान नहीं होता।’’
‘‘पेट में क्या खराबी हो जाती है?’’
‘‘जैसे कटहल खाने से पेट में वायु बनती है वैसे ही गोमांस खाने से पेट में रक्त अशुद्ध बनता है। उसके लिए रक्त शोधक औषधि खानी चाहिए।’’
इसी समय सुन्दरी उठकर पण्डित जी के सामने आ हाथ जोड़ खड़ी हो गई।
पण्डित जी ने कहा, ‘‘सुन्दरी! यह क्या पहन रखा है?’’
‘‘एक आलम कहता है कि हर मुसलमान औरत के यह लक्षण हैं।’’
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