लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।

5

जिस दिन सुंदरी का अपहरण हुआ था, सराय में सब प्राणियों में हलचल मची रही। उस समय कुछ यात्री भी वहां ठहरे हुए थे। सब सराय के फाटक पर खड़े दूर भागते घोड़ों से उड़ती धूल को देखते रह गए। सब सुंदरी की ‘बचाओ-बचाओ’ की पुकार सुन वहाँ एकत्रित हुए थे। रामकृष्ण के दोनों लड़को, लोहार और रामकृष्ण स्वयं की तलवार ले वहाँ आए थे। परंतु घोड़ा किसी के पास नहीं था। यदि होता भी तो शहंशाह के साथ आधा दर्जन लड़ने-मरने के लिए तैयार सिपाही थे।

एक यात्री जो कोई सैनिक राजपूत था, सराय के मालिक से पूछने लगा, ‘‘यह तुम्हारी बेटी थी?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘मालूम नहीं होती थी। तुम घर के सब लोग बड़े कुरूप प्रतीत होते हो और वह तो अति सुंदर थी। मैंने उसे आज रात अपने कमरे में आने का निमंत्रण दिया था और उसे एक रुपया देने का वचन दिया था।’’

‘‘तो उसने क्या कहा था?’’ एक अन्य यात्री ने पूछ लिया।

‘‘कहती थी कि उसका विवाह हो चुका है। किसी दूसरे की सोहबत में जाना पाप है।’’

बात लोहार ने चलाई। उसने कहा, ‘‘वह घोड़े को नाल लगवानेवाला बता रहा था कि घोड़ा शहंशाह अकबर का है।’’

‘‘तो शहंशाह ने उसका अपहरण किया है?’’ वह सिपाही बोला जो सुंदरी को अपनी कोठरी में आने का निमंत्रण देने की बात कह रहा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book