उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
पीछे अकबर ने वह थैली पंडित जी के पास नगर सराय में भेज दी। परंतु पंडित जी ने शहंशाह का शुक्रिया अदा किया और थैली को छुए बिना वापस कर दिया।
शहंशाह को समझ नहीं आया। इस पर उसने पंडित जी पर जासूस लगा दिए कि पता करें कि वह कितना धनी व्यक्ति है।
जासूस दो मास की छानबीन के उपरांत लौट आए और इत्तला की कि पंडित विभूतिचरण, उसकी पत्नी और दो बच्चे हैं। बहुत निर्धन होने पर भी गाँव में पूजे जाते हैं। लोग बिना कहे उसके घर में अन्न-अनाज, वस्त्रादि दे जाते हैं। वह किसी के घर से उठाकर कुछ नहीं लाता।
इस पर अकबर को विस्मय हुआ। दो मास की जाँच-पड़ताल के उपरांत शहंशाह ने पंडित जी को पुनः बुलाया।
शहंशाह ने बताया कि उसकी शादी का प्रबंध जयपुर-नरेश की लड़की से हो रहा है।
पंडित ने इस पर हर्ष-शोक प्रकट किए बिना कह दिया, ‘‘आपका मन क्या कहता है?’’
‘‘हमारे मजहबी रहनुमा इस रिश्ते से मना कर रहे हैं।’’
‘‘मजहब क्या होता है?’’
‘‘जो हजरत मुहम्मद साहब ने इसलाम के नाम से चलाया है।’’
‘‘लेकिन आपका मन क्या कहता है?’’
‘‘वह इस शादी के हक में कहता है।’’
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