उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
निरंजन देव मान गया। पंडे का एक मकान था। वह इनको लेकर स्नानादि के लिए ब्रह्म कुंड गंगा घाट पर जा पहुँचा।
तब तक मथुरा के जासूस ने दूसरे पंडे को भड़का दिया था कि वह तुम्हारे घर को अपवित्र कर देगा। वह लड़की मुसलमान की बेटी है।
इसका परिणाम यह हुआ कि नगर-भर के पंडे पंक्ति बाँध घाट का मार्ग रोककर खड़े हो गए और कहने लगे, ‘‘यह लड़की इस स्थान पर स्नान नहीं कर सकती। युवक कर सकता है।’’
वह पंडा जो इनको कोतवाल के पास ले गया था, बहुत समझाता रहा परंतु पंडे नहीं माने।
पंडे आनंद प्रिय ने निरंजन देव से कहा, ‘‘यह बहन तो नीचे गंगा पर स्नान कर सकती है और लाला जी, आप ब्रह्म कुंड पर स्नान कर सकते हैं।’’
यह बात निरंजन देव को पसंद नहीं आई। वह नीचे आ गंगा घाट पर स्नान करने लगा। सुंदरी उसके साथ ही थी।
सुंदरी विचार कर रही थी कि यहाँ के हिंदू विचित्र हैं जो एक सामान्य-से विधर्मी के कहने पर उसके स्नान करने पर भी बाधा खड़ी कर रहे हैं। उसने स्नान नहीं किया और क्रोध में बैठी रही।
निरंजन देव ने जल्दी-जल्दी स्नान किया और बाजार में खाने के लिए पूरी-साग और मिठाई ला पंडे के मकान पर चला गया।
पंडे को निरंजन देव ने दस रुपए दिए। यह राशि वह पूजा करने पर ब्रह्म कुंड में स्नान करने के उपरांत देना चाहता था। अब बिना पूजा के ही उसने दे दिए।
पंडा बहुत प्रसन्न था, परंतु निरंजन देव उसे भी चकमा दे वहाँ से भाग जाना चाहता था। पंडा दक्षिणा ले चला गया तो पूरी, मिठाई खाते हुए निरंजन देव ने सुंदरी से कहा, ‘‘हमें यहाँ से भी भाग जाना चाहिए।’’
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