लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


बाहर जफ़रखाँ सहारनपुर वाली घटना होने से रोकने का प्रबंध कर रहा था। उन पंडों को जिन्हें दान-दक्षिणा नहीं मिली थी, वह भड़काने लगा था।

वह कह रहा था, ‘‘मैं साबित कर दूँगा कि यह औरत मुसलमान है और यहाँ हिंदुओं को भ्रष्ट करने के लिए आई है।’’

एक ने, जो निराश हो चुका था, कहा, ‘‘मगर जफ़रखाँ साहब! आपने या किसी ने भी इनको किसी तरह से तंग किया तो यहाँ का कोतवाल आपको पकड़कर कैद कर लेगा। यह किसी का लिहाज नहीं करता।’’

‘‘मैं यह कह रहा हूँ,’’ जफ़रखाँ ने कहा, ‘‘तुम किसी-न-किसी प्रकार इसको यहाँ रोको। मैं तुममें से ही किसी को एक चिट्ठी देकर सहारनपुर के कोतवाल के पास भेज देता हूँ और वह वहाँ से इनकी गिरफ्तारी का परवाना तैयार करा ले आएगा और तब मैं जानेवाले को इनाम दिलवाऊँगा। उसकी इस सेवा के लिए शहंशाह से सिफारिश कर दूँगा जिससे वहाँ से इनाम मिलेगा।’’

सहारनपुर से सहायता आने में तीन दिन लग जाने की आशा थी और तीन दिन तक यात्रियों को रोकने की बात होने लगी। जफर ने एक पंडे युवक को, जिसके पास अपना टट्टू था, सहारनपुर के कोतवाल के नाम पत्र देकर भेज दिया। सब पंडों ने आनंद प्रिय के मकान को घेरने का प्रबंध कर दिया। पहरेदार नियुक्त कर दिए गए।

सहारनपुर का कोतवाल एक मुतअस्सिब मुसलमान था। जफ़रखाँ उससे आशा करता था कि वह एक गिरफ्तारी का परवाना तैयार कर भेज देगा और फिर निरंजन देव और उसकी बीवी को मुसलमान मान लिया जाएगा। वह समझता था कि एक बार ये लोग मथुरा पहुँचे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book