लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


जफ़रखाँ जब इनका पीछा करता हुआ मथुरा से चला था, तब तक आगरा से किसी प्रकार की सूचना नहीं आई थी। इस कारण वह विचार कर रहा था अगर निरंजन देव का कहना ठीक भी हुआ तब भी कुछ हानि नहीं होगी। वह मथुरा में जाकर छूट जाएगा। इससे अधिक तो कुछ हो नहीं सकता। इस्लाम की इस खिदमत के लिए उसे इनाम नहीं मिलेगा तो दंड भी नहीं दिया जाएगा।

आधी रात को जब निरंजन देव और सुंदरी मकान से निकलकर भागने लगे तो वहाँ के पंडों ने, जो मकान को चारों ओर से घेरे हुए थे, उनको भागने नहीं दिया। पंडों ने कह दिया, ‘‘हमने आपको यहाँ चार दिन तक रोककर रखने का वचन दिया है। आप जा नहीं सकते।’’

‘‘किसको वचन दिया है?’’

‘‘जफ़रखाँ को। वह कहता है कि आपकी गिरफ्तारी का परवाना इन तीन-चार दिनों में आ जाएगा।’’

निरंजन देव ने कहा, ‘‘निर्दोष व्यक्तियों को रोककर रखने का आप पाप कर रहे हैं।’’

‘‘देखो लाला! रात को चोरी-चोरी भागने का यत्न ही यह प्रकट करता है कि तुम चोर हो। हम तुम्हें नहीं जाने देंगे।’’

विवश निरंजन देव दिन निकलने की प्रतीक्षा करने लगा। उसने विचार किया था कि प्रातः वह कोतवाल से कहकर छुट्टी पा लेगा। परंतु दिन के समय भी उसे मकान से निकलने नहीं दिया गया। तब तक हरिद्वार के पूर्ण नगर में यह विख्यात हो चुका था कि एक मुसलमान औरत को एक हिंदू भगाकर लाया है और उसकी गिरफ्तारी के परवाने की प्रतीक्षा की जा रही है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book