उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
तीसरे दिन निरंजन देव और उसके साथ भागी औरत को पकड़कर सहारनपुर भेजने का हुक्म आ गया। अब हरिद्वार का कोतवाल भी विवश हो गया और उसने दोनों को पकड़कर सहारनपुर भेज दिया।
सुंदरी के मन में हिंदुओं के प्रति घृणा उत्पन्न हो रही थी। वह समझती थी कि एक हिंदू को हिंदू की बात का विश्वास करना चाहिए था। हुआ इसके विपरीत। हरिद्वार के पंडों ने एक मुसलमान की बात को सत्य माना और उनको पकड़वाने में सहायता की।
परंतु यह तो हिंदुओं की विकृति मनोवृत्ति के दर्शन का अभी आरंभ ही था। उनको सहारनपुर से पहरे में मथुरा भेज दिया गया। मथुरा में आगरे से यह सूचना आ चुकी थी कि लड़की तो हिंदू ही है। एक हिंदू युवक अपने परिवारवालों से चोरी-चोरी एक छोटी जाति की लड़की से विवाह कर भागा है। अतः मथुरा के कोतवाल ने दोनों को पहरे में आगरा भेज दिया। आगरे के कोतवाल ने निरंजन देव और सुंदरी के बयान लिए। अब तक सुंदरी हिंदुओं और सरकारी अहलकारों के अन्याययुक्त व्यवहार से तंग आ चुकी थी। वह सब सत्य-सत्य बक गई। जब कोतवाल को पता चला कि निरंजन देव ने शहंशाह के अंतःपुर की एक औरत को भगाया है तो मामला आगरे के मीरे-अदल के पास भेज दिया।
परिणाम यह हुआ कि मामला शहंशाह के इल्म में लाया गया। अकबर सुंदरी को पा जाने से प्रसन्न तो हुआ, परंतु वह सुंदरी से अपने संबंध की बात को गुप्त रखना चाहता था। उसने एक योजना बनाई और निरंजन देव तथा सुंदरी को पृथक्-पृथक् अपने सामने हाजिर करने का हुक्म दे दिया।
निरंजन देव आया तो उससे एकांत में भेंट कर अकबर ने बताया, ‘‘देखो निरंजन देव! तुम्हारे बाप ने तुम्हें बेदखल कर दिया है। साथ ही तुम हमारे हरम से हमारी एक प्यारी औरत को भगाने के मुजरिम हो। इस पर भी हम तुम्हें छोड़ सुंदरी के साथ रहने की इजाजत दे सकते हैं अगर तुम मुसलमान हो जाओ।’’
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