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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


‘‘मुझे भी यह बताया गया है कि भटियारिन और उसके परिवार ने इस कारण प्रायश्चित किया है कि वह तुमको एक मुसलमान की लड़की समझते हैं। मुसलमान की बेटी को अपने रसोईघर से खिलाने-पिलाने के पाप का वे प्रायश्चित कर चुके हैं। इससे तुम तो मुसलमान ही समझी जा रही हो और मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए मुसलमान होने को तैयार हूँ।’’

इस प्रकार दोनों ने अपने मुसलमान बन जाने की स्वीकृति दी तो अकबर ने इनके लिए भी भटियारिन की सराय के समीप ही मकान बनवाने की योजना कर दी और निरंजन देव को मुसलमान बनकर रहने के लिए एक गाँव का मालिक मान लिया गया।

वही गाँव जिसमें मोहन और भगवती की ससुराल थी, पति-पत्नी को शहंशाह की ओर से भेंट में दे दिया गया।

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